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वर्ग ५ अध्ययन १ - द्वारिका विनाश का कारण ******kekakkek******kakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakankekkkkkkkkkkkkkkkkPAIN
- पद्मावती एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई णामं णयरी होत्था, जहा पढमे, जाव कण्हे वासुदेवे आहेवच्चं जाव विहरइ। तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावई णामं देवी होत्था, वण्णओ।
भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी, जम्बू स्वामी से कहते हैं - "हे जम्बू! उस काल उस समय में द्वारिका नाम की नगरी थी। वहाँ कृष्ण-वासुदेव राज करते थे। उनकी रानी का नाम 'पद्मावती' था। वह अत्यन्त सुकुमार और सुरूप थी।" भगवान् अरिष्टनेमि का पदार्पण
(५१) - तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठणेमी समोसढे जाव विहरइ। कण्हे णिग्गए जाव पज्जुवासइ। तएणं सा पउमावई देवी इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणी हहतुढे जहा देवई जाव पज्जुवासइ। तएणं अरहा अरिट्ठणेमी कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावई देवीए जाव धम्मकहा। परिसा पडिगया। ___भावार्थ - उस काल उस समय में भगवान् अरिष्टनेमि, तीर्थंकर परंपरा से विचरते हुए वहाँ पधारे। भगवान् का आगमन सुन कर कृष्ण-वासुदेव उनके दर्शन के लिए गये यावत् पर्युपासना करने लगे। भगवान् का आगमन सुन कर पद्मावती रानी भी अत्यन्त हृष्ट-तुष्ट-प्रसन्न हुई। वह भी देवकी के समान धर्म-रथ पर चढ कर भगवान् के दर्शन करने के लिए गई। भगवान् अरिष्टनेमि ने कृष्ण-वासुदेव, पद्मावती रानी और परिषद् को धर्मकथा कही। धर्म-कथा सुन कर परिषद् अपने-अपने घर लौट गई।
द्वारिका विनाश का कारण तए णं कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्ठणेमिं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - इमीसे णं भंते! बारवईए णयरीए दुवालसजोयण-आयामाए णवजोयण
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