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पंचमो वग्गो - पंचम वर्ग
परिचय
(४६) जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं चउत्थस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते, पंचमस्स णं भंते! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पएणत्ते? एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता। तं जहा -
पउमावई य गोरी, गंधारी लक्खणा सुसीमा य। जंबुवई सच्चभामा, रुप्पिणी मूलसिरी मूलदत्ता य॥
भावार्थ - जम्बू स्वामी, श्री सुधर्मा स्वामी से पूछते हैं - 'हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अंतगड सूत्र के चतुर्थ वर्ग का जो अर्थ कहा, वह मैंने सुना। हे भगवन्! इसके बाद पांचवें वर्ग में क्या भाव कहे हैं?' ___ उपर्युक्त प्रश्न के उत्तर में श्री सुधर्मा स्वामी कहते हैं - 'हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पांचवें वर्ग में दस अध्ययन कहे हैं। वे इस प्रकार हैं -
१. पद्मावती २ गौरी ३ गान्धारी ४ लक्ष्मणा ५ सुसीमा ६ जाम्बवती ७ सत्यभामा ८ रुक्मिणी ह मूलश्री और १० मूलदत्ता।'
प्रथम अध्ययन
(५०) . जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता। पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते?
भावार्थ - श्री जम्बू स्वामी पूछते हैं - 'हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पांचवें वर्ग में दस अध्ययन कहे हैं, तो उनमें से पहले अध्ययन का क्या भाव है?'
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