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अन्तकृतदशा सूत्र **********
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६. अभिचन्द्र और १०. वसुदेव । वसुदेवजी के कुंती और माद्री ये दो छोटी बहनें थीं । बलदेव और वासुदेव के परिवार को भी 'दशाह' कहते हैं। जिनमें समुद्रविजय जी तो त्रैलोक्य पूज्य भगवान् अरिष्टनेमिनाथ के पिताजी थे ।
२. अमुक प्रकार का शौर्य प्रदर्शित करने पर जिस प्रकार आजकल सैनिकों को वीर चक्र, महावीर चक्र, परमवीर चक्र आदि प्रदान किये जाते हैं वैसे ही वीर, महावीर आदि के विभाग श्री कृष्ण महाराज के समय में होने की संभावना है।
३. वसुदेव की देवकी रानी से कृष्ण महाराज एवं रोहिणी से बलदेव का जन्म हुआ था । प्रद्युम्नकुमार रुक्मिणी के अंगजात थे तथा शाम्ब की माता का नाम जाम्बवती था ।
४. सेना की टुकडियां रेजिमेन्ट्स' को 'बलवग्ग' - बलवर्ग कहा जाता है। ५. " ईसर जाव सत्थवाहाणं" यहां जाव शब्द में. तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी और सेनापति का ग्रहण है।
तलवर - राजा के कृपा पात्र को अथवा जिन्होंने राजा की ओर से उच्च आसन (पदवी विशेष ) प्राप्त कर लिया है। ऐसे नागरिकों को 'तलवर' कहते हैं ।
माइम्बिक - जिसके निकट दो-दो योजन तक कोई ग्राम न हो, उस प्रदेश को 'मडम्ब ' कहते हैं, मडम्ब के अधिनायक को 'माडम्बिक' कहा जाता है।
कौटुम्बिक - कुटुम्बों के स्वामी को 'कौटुम्बिक' कहते हैं ।
६. 'आहेवच्चं जाव..." यहां 'जाव' शब्द में 'पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं' आदि पद ग्राह्य है। पुर पर मालिकी 'पोरेवच्चं' है। स्वामित्व करना 'सामित्तं' है। रक्षा करना 'भट्टित्तं' है।
गौतमकुमार का जन्म एवं सुखोपभोग
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तत्थ णं बारवईए णयरीए अंधगवण्ही णामं राया परिवसइ, महया हिमवंत वण्णओ । तस्स णं अंधगवहिस्स रण्णो धारिणी णामं देवी होत्था, वण्णओ । भावार्थ उस द्वारिका नगरी में महा हिमवान् मन्दर आदि पर्वतों के समान स्थिर एवं मर्यादा पालक तथा बलशाली 'अंधकवृष्णि' नाम के राजा थे। स्त्रियों के सभी लक्षणों से युक्त उनकी धारिणी नाम की रानी थी।
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