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अन्तकृतदशा सूत्र ***********************************本來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來
भावार्थ - उस समय वह देवकी पुत्र सम्बन्धी चिंता से युक्त हो, अभिलषित विचार अपने मन में इस प्रकार करने लगी - "मैंने आकृति, वय और कान्ति में एक समान यावत् नलकूबर के समान सात पुत्रों को जन्म दिया, किन्तु उन पुत्रों में से किसी भी पुत्र की बालक्रीड़ा के आनंद का अनुभव नहीं किया। यह कृष्ण भी मेरे पास चरण-वंदन के लिए छह-छह महीने के बाद आता है।"
विवेचन - शंका - श्रीकृष्ण जैसे विनीत पुत्र अपनी माता को चरण वंदन के लिए छहछह माह से जाते थे, इसका क्या कारण है?
समाधान - कृष्ण वासुदेव प्रतिदिन ४०० माताओं को चरण वंदन करते थे। इस प्रकार छह महिने में ७२ (बहत्तर) हजार माताओं को वंदन होता था। भगवती सूत्र श० ११ उ० ११ में महाबल के वर्णन से यह मालूम पड़ता है कि - बीच में उनका (वासुदेवजी का) महल था, चारों तरफ रानियों के महल थे। सभी महलों का एक द्वार मुख्य (बीच के) महल की तरफ था। वैसे ही यहाँ पर भी बीच में वसुदेव जी का महल एवं उसके चारों ओर १८० महलों का झूमका होगा। एक-एक महल की ४००-४०० माताओं के एक साथ एक जगह इकट्ठा होने पर वे उनको वंदना करे तो थोड़े समय में चरणवंदन भी हो सकता है तथा इस प्रकार मानने पर उपरोक्त पाठ की संगति भी बैठ जाती है। ऐसा पू० गुरुदेव (श्रमणश्रेष्ठ बहुश्रुत श्री समर्थमलजी म. सा.) फरमाया करते थे।
श्री कृष्ण वासुदेव के पिता 'वसुदेवजी' ने अपने पहले के नन्दीषेण के भव में 'स्त्री वल्लभ' होने का निदान किया था। उसके फलस्वरूप १०० (सौ) वर्ष तक विद्याधर श्रेणी आदि अनेक स्थानों पर घुमते हुए उन्हें सैकड़ों पत्नियाँ उपलब्ध हुई। ऐसा वर्णन त्रिषष्टिशलाका पुरुष चारित्र एवं वसुदेव हिण्डि आदि ग्रंथों में मिलता है। ७२००० का उल्लेख देखने में नहीं आया है। पू० गुरुदेव से तो सुना गया है। शायद टब्बों आदि में पू० गुरुदेव को ऐसा उल्लेख मिला होगा। 'स्त्रीवल्लभ' निदान के कारण अधिक स्त्रियाँ मिलना तो ग्रंथकार बताते ही हैं। __अंतगडदशा सूत्र के मूल पाठ में ही 'छण्हं छण्हं मासाणं मम अंतियं पायवंदए हव्वमागच्छइ' 'छह-छह महीनों से कृष्ण वासुदेव के आने का' उल्लेख है। वहाँ के वर्णन को देखने में ऐसा आभास नहीं होता है कि 'दुःख की रात्रि बड़ी लगने जैसा यह वर्णन है।' देवकी का दुःख तो पुत्रों के बचपन को नहीं देखने का है। किन्तु कृष्णवासुदेव के छह महीनों से आने का दुःख नहीं बताया गया है।
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