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नवमं अज्झयणं
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णवमस्स उक्खेवओ - एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए णयरीए जहा पढमए जाव विहरइ । तत्थ णं बारवईए णयरीए बलदेवे णामं राया होत्था, वण्णओ । तस्स णं बलदेवस्स रण्णो धारिणी णामं देवी होत्था, वण्णओ । तणं सा धारिणी सीहं सुमिणे जहा गोयमे, णवरं सुमुहे णामं कुमारे, पण्णासं कण्णाओ, पण्णासं दाओ, चोहसपुव्वाइं अहिज्जइ वीसं वासाइं परियाओ, सेसं तं चेव जावसेत्तुंजे सिद्धे । णिक्खेवओ ।
कठिन शब्दार्थ उक्खेवओ उत्क्षेपक - प्रारंभ, सीहं - सिंह का, सुमिणे स्वप्न, पण्णासं पचास, कण्णाओ - कन्याएं, दाओ. - दात चौदह पूर्वोका, सेत्तुंजे - शत्रुंजय पर्वत पर, णिक्खेवओ निक्षेपक
दहेज, चोहसपुव्वाइं
उपसंहार ।
भावार्थ - जम्बूस्वामी, सुधर्मा स्वामी से पूछते हैं- 'हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अंतगडदशा सूत्र के तीसरे वर्ग के आठवें अध्ययन के जो भाव कहे, वे मैंने आपसे सुने हैं। हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने नौवें अध्ययन के क्या भाव कहे हैं ? '
नवम अध्ययन
सुमुखकुमार
(४४)
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जम्बूस्वामी के उपरोक्त प्रश्न के उत्तर में सुधर्मा स्वामी ने कहा - 'हे जम्बू ! उस काल उस समय में द्वारिका नाम की नगरी थी, जिसका वर्णन पहले किया जा चुका है। उस नगरी में भगवान् अरिष्टनेमि, तीर्थंकर - परम्परा से विचरते हुए पधारे। उस द्वारिका नगरी में 'बलदेव' नाम के राजा थे। उनकी रानी का नाम 'धारिणी' था। वह अत्यन्त सुकोमल और सुन्दर थी । एक समय सुकोमल शय्या पर सोयी हुई धारिणी रानी ने स्वप्न में सिंह देखा । स्वप्न देखते ही जाग्रत हो कर अपने पति के समीप आई और स्वप्न का वृत्तान्त सुनाया। गर्भ समय पूर्ण होने पर
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