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वर्ग ३ अध्ययन ८
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यावत् सभी अलंकारों से अलंकृत हो, हाथी पर बैठ कर, कोरण्ट के फूलों की माला से युक्त छत्र सिर पर धराते हुए तथा दाएँ-बाएँ दोनों ओर श्वेत चामर डुलाते हुए, अनेक सुभटों के समूह से युक्त कृष्ण-वासुदेव द्वारिका नगरी के राजमार्ग से होते हुए भगवान् अरिष्टनेमि के समीप जाने के लिए चले।
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वृद्ध पर अनुकम्पा एवं सहयोग
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वृद्ध पर अनुकम्पा एवं सहयोग
तणं से कहे वासुदेवे बारवईए णयरीए मज्झमज्झेणं णिग्गच्छमाणे एक्कं पुरिसं पासइ जुण्णं जराजज्जरियदेहं जाव किलंतं महईमहालयाओ इट्टगरासीओ एगमेगं इट्टगं गहाय बहियारत्थापहाओ अंतोगिहं अणुप्पविसमाणं पासइ । कठिन शब्दार्थ - जुण्णं - वृद्ध, जराजज्जरियदेहं
क्लान्त
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जरा से जर्जरित देह, किलंतं • कुम्हलाया हुआ एवं थका हुआ, महई महालयाओ - महातिमहतः इट्टगरासीओ - ईंटों का ढेर, एगमेगं बाहर गली में रखे हुए, अंतोगिहं - गृह के अंदर ।
बहुत बड़ा, एक-एक, इट्टगं - ईंट को, बहियारत्थापहाओ
भावार्थ द्वारिका नगरी के मध्य जाते हुए कृष्ण-वासुदेव ने एक पुरुष को देखा। वह बहुत वृद्ध था। वृद्धावस्था के कारण उसकी देह जर्जरित हो गई थी। वह बहुत दुःखी था। उसके घर के बाहर, राजमार्ग पर ईंटों का एक विशाल ढेर था। वह वृद्ध उस विशाल ढेर में से एकएक ईंट उठा कर बाहर से अपने घर में ला कर रख रहा था ।
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तए णं से कण्हे वासुदेवे तस्स पुरिसस्स अणुकंपणट्ठाए हत्थिक्खंधवरगए चेव एगं इट्टगं मिण्हइ, गिण्हित्ता बहियारत्थापहाओ अंतोगिहं अणुप्पवेसेइ । तए णं कण्हेणं वासुदेवेणं एगाए इट्टगाए गहियाए समाणीए अणेगेहिं पुरिससएहिं से महालए इट्टगस्स रासी बहियारत्थापहाओ अंतोघरंसि अणुप्पवेसिए ।
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कठिन शब्दार्थ कंप अनुकम्पा के कारण, हत्थिक्खंधवरगए चेव - हाथी के हौदे पर बिराजे हुए ही, अणुप्पवेसेइ प्रवेश करा दिया, अणेगेहिं पुरिससएहिं अनेक सैंकड़ों पुरुषों के द्वारा, महालए
महान् ।
भावार्थ
उस दुःखी वृद्ध को इस प्रकार कार्य करते हुए देख कर कृष्ण-वासुदेव के मन में अनुकम्पा उत्पन्न हुई। उन्होंने हाथी पर बैठे-बैठे ही अपने हाथ से एक ईंट उठा कर उसके
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