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वर्ग ३ अध्ययन ८
पहचान का उपाय
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जहा णं कण्हा! तुमं तस्स पुरिसस्स साहिज्जे दिण्णे । एवामेव कण्हा! तेणं पुरिसेणं गयसुकुमालस्स अणगारस्स अणेगभव-सयसहस्स - संचियं कम्मं उदीरेमाणेणं बहुकम्मणिज्जरट्ठ साहिज्जे दिण्णे । "
कठिन शब्दार्थ . अणेगभवसयसहस्ससंचियं
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अनेकानेक लाखों भवों के संचित,
उदीरेमाणेणं - उदीरणा करने में, बहुकम्मणिज्जरटुं - बहुत कर्मों की निर्जरा के लिये ।
'हे भगवन्! उस पुरुष ने
भावार्थ यह सुन कर कृष्ण - वासुदेव ने भगवान् से पूछा गजसुकुमाल अनगार को कैसे सहायता दी ?' भगवान् ने कहा 'हे कृष्ण ! मेरे चरण - वन्दन करने के लिए आते हुए तुमने द्वारिका नगरी के राजमार्ग पर एक बहुत बड़े ईंटों के ढेर में से एक-एक ईंट उठा कर घर में रखते हुए, एक दीन-दुर्बल वृद्ध पुरुष को देखा। उस पर अनुकम्पा कर के तुमने उस ढेर में से एक ईंट उठा कर उसके घर में रख दी, जिससे तुम्हारे साथ वाले सभी पुरुषों ने क्रम से उन सभी ईंटों को उठा कर उसके घर में रख दिया, जिससे उस वृद्ध पुरुष का दुःख दूर हो गया । '
'हे कृष्ण ! जिस प्रकार तुमने उस वृद्ध पुरुष की सहायता की, उसी प्रकार उस पुरुष ने भी गजसुकुमाल के लाखों भवों में संचित किये हुए कर्मों की एकांत उदीरणा कर के उनका सम्पूर्ण • क्षय करने में बड़ी सहायता दी है।'
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पहचान का उपाय
तए णं से कहे वासुदेवे अरहं अरिट्ठणेमिं एवं वयासी - से णं भंते! पुरिसे मए कहं जाणियव्वे? तए णं अरहा अरिट्ठणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - जे णं कहा ! तुमं बारवईए णयरीए अणुप्पविसमाणं पासित्ता ठियए चेव ठिइभेएणं कालं करिस्सइ। तए णं तुमं जाणिज्जासि एस णं से पुरिसे ।
कठिन शब्दार्थ - कहं - कैसे, जाणियव्वे - जान सकूंगा, अणुप्पविसमाणं - प्रवेश करते हुए, ठियए - खड़े-खड़े, ठिङ्गभेएणं- स्थिति भेद कालं (मृत्यु), करिस्सइ - करेगा।
आ
काल
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