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अन्तकृतदशा सूत्र *****************************
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महब्बलस्स जाव तमाणाए तहा जाव संजमित्तए। से गयसुकुमाले अणगारे जाए इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी।
कठिन शब्दार्थ - णो संचाएइ - समर्थ नहीं हुए, बहुयाहिं - बहुत से, अणुलोमाहिअनुकूल युक्तियों से, आघवित्तए - समझाने में, अकामाई - निराश (लाचार) होकर, रज्जसिरिराज्यश्री, पासित्तए - देखना चाहते हैं, णिक्खमणं - निष्क्रमण, तमाणाए - आज्ञा में रह कर, संजमित्तए - संयमित करने लगे, जाए - जन्म, इरियासमिए - ईर्यासमिति, गुत्तबंभयारीगुप्त ब्रह्मचारी।
भावार्थ - जब कृष्ण-वासुदेव और राजा वसुदेवजी तथा देवकी रानी, गजसुकुमाल कुमार को अनेक प्रकार के अनुकूल और प्रतिकूल वचनों से भी नहीं समझा सके, तब असमर्थ हो कर इस प्रकार बोले -
"हे पुत्र! हम लोग तुझे एक दिन के लिए भी राजसिंहासन पर बिठा कर तेरी राज्यश्री देखना चाहते हैं। इसलिए तुम कम-से-कम एक दिन के लिए भी राज्य-लक्ष्मी को स्वीकार करो।" .
माता-पिता और बड़े भाई के अनुरोध से गजसुकुमाल चुप रहे। इसके बाद बड़े समारोह के साथ उनका राज्याभिषेक किया गया। गजसुकुमाल के राजा हो जाने के बाद माता-पिता ने पूछा - 'हे पुत्र! तुम क्या चाहते हो?' गजसुकुमाल ने उत्तर दिया - 'मैं दीक्षा लेना चाहता हूँ।' तब गजसुकुमाल की आज्ञानुसार दीक्षा की सभी सामग्री मंगाई गई और महाबल के समान दीक्षा अंगीकार कर के गजसुकुमाल अनगार बन गये। वे ईर्यासमिति आदि से युक्त हो कर सभी इन्द्रियों को अपने वश में कर के गुप्त ब्रह्मचारी बन गये। ___ विवेचन - कृष्ण वासुदेव के द्वारा गजसुकुमाल को ऐसा कहे जाने पर कि - 'मैं तुम्हें तीन खण्ड का राजा बनाऊंगा' गजसुकुमाल मौन रहे क्योंकि उनकी इच्छा द्वारकाधीश बनने की नहीं थी। वे दूसरों पर राज्य नहीं करना चाहते थे। वे तो आत्माधीश बनने की ठान चुके थे। दीक्षा की आज्ञा प्राप्ति के लिए उन्होंने उद्यम नहीं छोड़ा। बार-बार माता-पिता से आग्रह किया। सांसारिक सुखोपभोग एवं शरीर की नश्वरता का कथन किया। जब कृष्ण और उनके माता-पिता संसार से जोड़ने वाली अनुकूल बातों से और संयम से विमुख करने वाली प्रतिकूल बातों से, साधारण रूप से और विशेष रूप से नहीं समझा सके तब विवश होकर कहा कि - "हमारी इच्छा है कि हम तुम्हें एक दिन के लिए भी राजा बना हुआ देखें ?"
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