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अन्तकृतदशा सूत्र
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पुत्रों की पहचान, छह अनगारों को वंदन
(२४) तए णं सा देवई देवी अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ट जाव हियया, अरहं अरिट्ठणेमिं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जेणेव ते छ अणगारा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ते छप्पि अणगारे वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता आगयपण्हुया पप्फुयलोयणा कंचुयपडिक्खित्तिया दरियवलयबाहा धाराहयकलंबपुप्फर्म विव समूसियरोमकूवा ते छप्पि अणगारे अणिमिसाए दिट्ठीए पेहमाणी पेहमाणी सुचिरं णिरिक्खइ, णिरिक्खित्ता वंदइ णमंसइ।
कठिन शब्दार्थ - आगयपण्या - आगतप्रश्नवा - स्तनों में पाना आ गया, पप्फुयलोयणा- आंखों में सजल स्नेहभरी चमक, कंचुयपडिक्खित्तिया - कंचूकी की कसे टूट गई, दरियवलयबाहा - दीर्ण वलयौ भुजौ - भुजाओं के आभूषण तंग हो गये, धाराहयकलंब-पुप्फगं विव समूसियरोमकूवा - वर्षा की धारा पड़ने से विकसित कदम्ब पुष्पं के समान शरीर के रोम पुलकित हो गये, अणिमिसाए - अनिमेष, दिट्ठीए.- दृष्टि से, पेहमाणीदेखती हुई, सुचिरं - चिरकाल तक, णिरिक्खइ - निरखती रही।
भावार्थ - भगवान् अरिष्टनेमि का उत्तर सुन कर देवकी देवी अत्यन्त प्रसन्न हुई और भगवान् को वंदन-नमस्कार कर के वहाँ गई - जहाँ वे छहों अनगार थे। उन अनगारों को देख कर पुत्र-प्रेम के कारण उसके स्तनों से दूध झरने लगा। हर्ष के कारण उसकी आँखों में आंसू भर आए एवं अत्यन्त हर्ष के कारण शरीर फूलने से उसकी कंचुकी की कसें टूट गई और भुजाओं के आभूषण तथा हाथ की चूड़ियाँ तंग हो गई। जिस प्रकार वर्षा की धारा पड़ने से कदम्ब पुष्प एक साथ विकसित हो जाते हैं, उसी प्रकार उसके शरीर के सभी रोम पुलकित हो गए। वह उन छहों अनगारों को अनिमेष दृष्टि से देखती हुई बहुत काल तक निरखती रही और बाद में उन्हें वंदन-नमस्कार किया।
विवेचन - गोचरी पधारते समय भगवान् के संतों के नाते देवकी ने आदर बहुमान किया था किन्तु बाद में अपने पुत्र हैं' - यह जान कर उन्हें जो प्रसन्नता हुई वह उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है। "छहों संतों की मैं माता हूं" - यह आह्लाद उनके शारीरिक परिवर्तन से भी परिलक्षित हुआ है।
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