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वर्ग ३ अध्ययन ८ - गजसुकुमाल का जन्म
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गजसुकुमाल का जन्म
(३०) तए णं देवई देवी णवण्हं मासाणं जासुमणारत्तबंधुजीवय-लक्खारस-सरसपारिजातक-तरुण. दिवायरसमप्पभं, सव्वणयणकंतं सुकुमालं जाव सुरूवं गयतालुयसमाणं दारयं पयाया। जम्मणं जहा मेहकुमारे जाव जम्हा णं अम्हं इमे दारए गयतालुसमाणो तं होउ णं अम्हं एयस्स दारयस्स णामधेजे गयसुकुमाले।
तएणं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णामं करेइ गयसुकुमाले त्ति सेसं जहा मेहे जाव अलं भोगसमत्थे जाए यावि होत्था।
कठिन शब्दार्थ - जासुमणा-रत्तबंधु-जीवयलक्खारस-सरस पारिजातक-तरुण दिवायर समप्पभं - जपाकुसुम, बंधुक-पुष्प, जीवक लाक्षा रस, श्रेष्ठ पारिजात एवं उदीयमान सूर्य के समान प्रभा, सव्वणयणकंतं - सर्वनयनकान्त - सर्वजन नयनाभिराम, सुकुमालंसुकुमाल, गयतालुयसमाणं - गजतालु के समान, दारगस्स - बालक के, अम्मापियरो - माता पिता, गयसुकुमाले - गजसुकुमाल, भोगसमत्थे - भोगसमर्थ।
भावार्थ - नौ महीने साढ़े सात दिन बीतने पर देवकी ने जपाकुसुम, बन्धुक-पुष्प, लाक्षारस, पारिजात तथा उदय होते हुए सूर्य के समान प्रभा वाले और सभी के नयन को सुख देने वाले अत्यन्त कोमल यावत् सुरूप एवं गज (हाथी) के तालु के समान सुकोमल बालक को जन्म दिया। जिस प्रकार मेघकुमार के जन्म के समय उनके माता-पिता ने महोत्सव किया, उसी प्रकार देवकी और वासुदेव ने जन्म-महोत्सव किया। उन्होंने विचार किया कि यह बालक, गज के तालु के समान सुकोमल है, इसलिए इसका नाम 'गजसुकुमाल' हो। ऐसा विचार कर मातापिता ने उस बालक का नाम ‘गजसुकुमाल' रखा। गजसुकुमाल का बाल्यकाल से ले कर यौवन तक वृत्तान्त मेघकुमार के समान जानना चाहिए।'
विवेचन - 'जम्मणं जहा मेहकुमारे' - धारिणी के समान देवकी महारानी के दोहद पूर्ति होने पर वह सुखपूर्वक अपने गर्भ का पालन करने लगी और नौ मास साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर उसने एक सुंदर पुत्र रत्न को जन्म दिया जिसका जन्म अभिषेक ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र के प्रथम अध्ययन में वर्णित मेघकुमार के समान समझना चाहिये अर्थात् -
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