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वर्ग ३ अध्ययन ८
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अनगारों का समाधान
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जहा तुच्छस्स कत्थइ तहा पुण्णस्स कत्थइ जहा पुण्णस्स कत्थइ तहा तुच्छस्स कत्थइ
यानी जैसा उपदेश गरीब को वैसा ही धनवान को और जैसा धनवान को वैसा ही गरीब
को देना चाहिए, ऐसा भगवान् फरमाते हैं ।
उक्त प्रसंग से यह स्पष्ट होता है कि मध्य के तीर्थंकरों के शासन में भी साधु-साध्वी एक घर को एक ही दिन में अनेक बार नहीं फरसते थे । देवकी रानी धर्म की जानकार थी। भगवान् अरिष्टनेमिनाथ के हस्त दीक्षित शिष्यों को पूछने में भी उसने विचार नहीं किया। यदि अनेक बार घर फरसने की तत्कालीन रीति होती तो देवकी के मन में इस प्रकार की शंका होने का कोई कारण ही नहीं रहता ।
'भुज्जो - भुज्जो' पद दो-तीन बार के लिए आया है । विचक्षण संत समझ गये कि रूप सरीखा होने के कारण देवकी हम छहों भाई मुनियों को दो ही समझ बैठी है। अतः इस शंका का समाधान करने के लिए वे अनगार फरमाते हैं।
अनगारों का समाधान (२०)
तए णं ते अणगारा देवनं देवी एवं वयासी - णो खलु देवाणुप्पिए! कण्हस्स वासुदेवस्स इमीसे बारवईए णयरीए जाव देवलोगभूयाए समणा णिग्गंथा उच्चणीय जाव अडमाणा भत्तपाणं णो लब्धंति, णो चेव णं ताइं ताइं कुलाई दोच्चं पि तच्चं पि भत्तपाणा अणुप्पविसंति ।
भावार्थ देवकी देवी का प्रश्न सुन कर वे अनगार इस प्रकार कहने लगे 'हे देवानुप्रिये ! कृष्ण-वासुदेव की स्वर्ग के सदृश इस द्वारिका नगरी में ऊंच-नीच और मध्यम कुलों में भिक्षार्थ घूमते हुए श्रमण-निर्ग्रन्थों को आहार- पानी नहीं मिलता है। इसलिए वे भिक्षा के लिए एक ही घर में बार-बार आते हैं- ऐसी बात नहीं है।
एवं खंलु देवाणुप्पिए! अम्हे भद्दिलपुरे णयरे णागस्स गाहावइस्स पुत्ता सुलसाए भारियाए अत्तया छ भायरो सहोयरा सरिसया जाव णलकूबरसमाणा
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