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अन्तकृतदशा सूत्र 來來來來來來來來來來來來 來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來将来
देवकी देवी का चिन्तन
... (२१) तएणं तीसे देवइए देवीए अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पण्णे - एवं खलु अहं पोलासपुरे णयरे अइमुत्तेणं कुमारसमणेणं बालत्तणे वागरिया - तुमं णं देवाणुप्पिए! अट्ठ पुत्ते पयाइस्ससि सरिसए जाव णलकूबरसमाणे, णो चेव णं भरहेवासे अण्णाओ अम्मयाओ तारिसए पुत्ते पयाइस्संति, तं णं मिच्छा। ..
कठिन शब्दार्थ - अयमेयारूवे - इस प्रकार का, अज्झथिए - अध्यवसाय, समुप्पण्णेउत्पन्न हुए, अइमुत्तेणं कुमारसमणेणं - अतिमुक्तक नामक कुमार श्रमण (बाल्य अवस्था में दीक्षित होने के कारण कुमारश्रमण कहा है), बालत्तणे - बचपन में, वागरिया - कहा, अट्ठ पुत्ते - आठ पुत्र, पयाइस्ससि - जन्म दोगी, अण्णाओ - अन्य, अम्मयाओ - माता, तारिसए - तादृश।
भावार्थ - उन अनगारों के चले जाने पर देवकी देवी की आत्मा में इस प्रकार मानसिक संकल्प-विकल्प उत्पन्न हुआ कि जब मैं बालक थी, उस समय पोलासपुर नगर में अतिमुक्तक अनगार ने मुझे कहा था कि - 'हे देवकी! तू आठ पुत्रों को जन्म देगी। तेरे वे सभी पुत्र आकृति, वय और कान्ति आदि में समान होंगे और वे नलकूबर के सदृश सुन्दर होंगे। इस भरत क्षेत्र में तेरे सिवाय अन्य कोई माता ऐसी नहीं होगी, जो ऐसे सुन्दर पुत्रों को जन्म दे सके।' 'मुनियों की वाणी असत्य नहीं होती। परन्तु अतिमुक्तक मुनि का वह कथन मिथ्या हुआ है।'
देवकी की शंका इमं णं पच्चक्खमेव दिस्सइ भारहे वासे अण्णाओ वि अम्मयाओ खलु सरिसए जाव पुत्ते पयायाओ। तं गच्छामि णं अरहं अरिट्ठणेमि वंदामि णमंसामि वंदित्ता णमंसित्ता इमं च णं एयारूवं वागरणं पुच्छिस्सामि त्ति कट्ट एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - लहुकरण-जाणप्पवरं जाव उवट्ठवेंति। जहा देवाणंदा जाव पजुवासइ।
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