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वर्ग २ अध्ययन १-८ - उपसंहार
अन्धकवृष्णि नाम के एक राजा रहते थे। उनके धारिणी नाम की रानी थी। उनके अक्षोभ, सागर, समुद्र, हिमवान्, अचल, धरण, पूरण और अभिचन्द्र नाम के आठ पुत्र थे।
प्रथम वर्ग में गौतमादि अध्ययन के समान अक्षोभ आदि आठ अध्ययन भी हैं। गौतम आदि दस कुमारों के समान इन्होंने भी 'गुणरत्न - संवत्सर' तप किया। सोलह वर्ष तक दीक्षा पर्याय का पालन किया और शत्रुंजय पर्वत पर एक मास की संलेखना कर के सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए ।
उपसंहार
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एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स दोच्चस्स वग्गस्स अयमट्ठे पण्णत्ते ।
॥ इइ दोच्चो वग्गो अट्ठ अज्झयणा समत्ता ॥
भावार्थ हे जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अंतगडदसा नामक आठवें अंग के दूसरे वर्ग में उपरोक्त अर्थ का प्रतिपादन किया है।
विवेचन - अंतगडदशा सूत्र के प्रथम एवं द्वितीय वर्ग के १८ (अठारह) ही अध्ययनों के लिए दो प्रकार कि मान्यताएं प्रचलित हैं। श्रावक दलपत राय जी प्रमुख 'दोनों वर्गों' में सादृश्य होने से प्रथम वर्ग के दसों व्यक्तियों को अंधकवृष्णि के पुत्र और धारिणी रानी के अंगजात सहोदर भाई मानते हैं और दूसरे वर्ग के आठों कुमारों को प्रथम वर्ग के दशवें अध्ययन में वर्णित विष्णु (पाठांतर - वृष्णि) कुमार के पुत्र अर्थात् अंधकवृष्टि के पौत्र मानते हैं।
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दूसरी मान्यता - पूज्य श्री जयमलजी महाराज प्रमुख प्रथम वर्ग के दसवें अध्ययन का नाम वृष्णिकुमार नहीं मानकर 'विष्णुकुमार' मानते हैं और द्वितीय वर्ग में वर्णित वृष्णि को अंधकवृष्णि मान कर अठारह ही कुमारों को सहोदर भाई मानते हैं। जैसा कि उनके द्वारा रचित बड़ी साधु. वंदना में कहा है -
'गौतमादिक कुंवर, सगा अठारह भ्रात ।
सर्व अंधक विष्णु सुत धारणी ज्यांरी मात ॥५५ ॥ तजी आठ अंतेउरी, काढ़ी दीक्षा नी बात ।
चारित्र लई ने कीधो मुक्ति नो साध ॥ ५६ ॥ इत्यादि ॥
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