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बीओ वग्गो - द्वितीय वर्ग
... प्रस्तावना
(६)
जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं पढ़मस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं कइ अज्झयणा पण्णता?
भावार्थ - जम्बू स्वामी, अपने गुरु श्री सुधर्मा स्वामी से पूछते हैं कि - हे भगवन्! सिद्धिगति को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने प्रथम वर्ग में गौतम आदि दस कुमारों का मोक्ष प्राप्ति पर्यन्त वर्णन किया, वह मैंने सुना। उसके बाद अंतगडदशा के दूसरे वर्ग में कितने अध्ययनों का प्रतिपादन किया है?
अध्ययनों के नाम एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठ अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा - __ अक्खोभे सागरे खलु, समुद्द हिमवंत अयलणामे य।
धरणे य पूरणे वि य, अभिचंदे चेवं अट्ठमए॥१॥ भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी कहते हैं कि - हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दूसरे वर्ग में आठ अध्ययनों का वर्णन किया हैं। वे इस प्रकार हैं - १ अक्षोभ २. सागर ३. समुद्र ४. हिमवान् ५. अचल ६. धरण ७. पूरण और ८. अभिचन्द्र।
तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए णयरीए वण्ही पिया, धारिणी माया। जहा पढमो वग्गो तहा सव्वे। अट्ट अज्झयणा गुणरयणतवोकम्मं, सोलस-वासाई परियाओ, सेत्तुंजे मासियाए संलेहणाए जाव सिद्धा।
भावार्थ - जिस समय भगवान् अरिष्टनेमि विचरते थे, उस समय द्वारिका नगरी में
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