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पठमो वग्गो
- प्रथम वर्ग
पढमं अज्झराणं प्रथम अध्ययन
गौतमकुमार (१)
उस,
ते काणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी होत्था, वण्णओ । कठिन शब्दार्थ - तेणं काणं काल, समएणं - समयं, चंपा णामं चम्पा नामक, णयरी - नगरी, होत्था - थी, वण्णओ वर्णक | भावार्थ इस अवसर्पिणी काल के चौथे आरे में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के समय में चम्पा नामक नगरी थी। उस चम्पानगरी का विस्तृत वर्णन औपपातिक सूत्र में दिया गया है, अतः वहां से जानना चाहिये ।
विवेचन 'तेणं कालेणं' (उस काल ) - वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौथे आरे के सामान्य काल को 'उस काल' कहा गया है 'तेणं समएणं' (उस समय ) - जिसमें वह नगरी और परम तारक वर्धमान स्वामी विद्यमान थे, उस विशेष काल को 'उस समय' कहा गया है। जिस समय इस सूत्र का निर्माण हुआ था, उस समय में भी चम्पा नगरी
शंका
विद्यमान थी। फिर भी 'चम्पानगरी थी' ऐसा भूतकालिक प्रयोग क्यों किया गया ?
समाधान
'चम्पानगरी थी' ऐसा भूतकालिक प्रयोग अवसर्पिणी काल हीयमान काल की अपेक्षा से किया गया है। क्योंकि जिस काल की कहानी कही जा रही है, उस काल की विभूति के समान, जिस समय कहानी कही जा रही है- उस समय में वह विभूति नहीं थी ।
काल द्रव्य के निमित्त से द्रव्यों की अवस्था में सदा परिवर्तन होता रहता है। वस्तु क्षण मात्र भी एक-सी अवस्था में नहीं रह सकती। कुछ क्षणों के पहले ही घटित प्रसंगों के लिये भूतकालिक क्रिया का प्रयोग ही इस बात को सिद्ध कर रहा है। अतः द्रव्य की यह परिभाषा बिलकुल सही है कि 'जो अपने सनातन गुणों में स्थित रहते हुए नई-नई अवस्थाओं को धारण करे या पर्यायों में गमन करें।'
चम्पा नगरी का विस्तृत वर्णन औपपातिक सूत्र से ज्ञातव्य है ।
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