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दुवालस- जो यणायामा णवजोषण - विच्छिण्णा धणवइ - मइ - णिम्मिया चामीगरपागारा णाणामणि- पंचवण्ण- कविसीसग - परिमंडिया सुरम्मा अलकापुरी संकासा पमुइय पक्कीलिया पच्चक्खं देवलोग भूया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।
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वर्ग 9 अध्ययन १ द्वारिका नगरी का वर्णन
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कठिन शब्दार्थ - बारवई णामं
बारह, जोयणयोजन, विच्छिण्णा
आयामा
योजन का आयाम ( लम्बाई), णव विष्कम्भ (चौड़ाई), धणवइ - मइ - णिम्मिया धनपति ( कुबेर) के बुद्धि कौशल से निर्मित, चामीगरपागारा स्वर्णमय परकोटा, णाणामणि - विविध प्रकार की मणियाँ, पंचवण्ण पांच वर्णों की, कविसीसग - कंपिशीर्षक- कंगूरे, परिमंडिया - परिमण्डित - जड़े हुए, सुरम्मासुरम्य, अलकापुरी - अलकापुरी कुबेर नगरी, संकासा सदृश, पमुइय - प्रमुदितआनंदपूर्वक, पक्कीलिया - क्रीड़ा करते, पच्चक्खं - प्रत्यक्ष, देवलोगभूया - देवलोक भूतदेवलोक के समान, पासाईया प्रासादीय मन को प्रसन्न करने वाली, दरिसणिज्जा
दर्शनीय, अभिरूवा - अभिरूप - प्रतिक्षण नवीन रूप वाली, पडिरूवा - प्रतिरूप - सर्वोत्तम (असाधारण) रूप वाली ।
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द्वारिका नाम की, दुवालस
नौ, जोयण
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ह
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भावार्थ जम्बू स्वामी फिर प्रश्न करते हैं कि हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अन्तकृतदशा नामक आठवें अंग के प्रथम वर्ग में दस अध्ययन कहे हैं, तो उनमें से -प्रथम अध्ययन में क्या भाव है?
श्री सुधर्मा स्वामी फरमाते हैं कि अन्तकृंतदशा नामक आठवें अंग के प्रथम
हे जम्बू ! इस अवसर्पिणीकाल के चौथे आरे में जब २२ वें तीर्थंकर भगवान् अरिष्टनेमिनाथ इस भूमण्डल पर विचरते थे, उस समय सौराष्ट्र देश की राजधानी 'द्वारिका' नाम की नगरी थी। वह बारह योजन लम्बी और नौ योजन चौड़ी थी। वह धनपति अर्थात् वैश्रमण (कुबेर) के अत्यन्त बुद्धि-कौशल द्वारा बनाई गई थी। वह स्वर्ण के परकोटे से घिरी हुई थी । इन्द्रनील मणि, वैडूर्य मणि, पद्मराग मणि आदि नाना प्रकार की पांच वर्ण की मणियों से जड़े हुए कपिशीर्षक (कंगूरों) से सुसज्जित, शोभनीय एवं सुरम्य थी। जिसकी उपमा अलकापुरी (कुबेर की नगरी) से दी जाती थी। उस नगरी के निवासी सुखी होने से प्रमुदित - हर्षित और क्रीड़ा करने वाले थे, इसलिए वह नगरी भी प्रमुदित और क्रीड़ाकारक थी एवं आमोद-प्रमोद और
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हे आयुष्मन् जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने वर्ग के पहले अध्ययन में ये भाव कहे हैं
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