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- अन्तकृतदशा सूत्र **来来*******************本来来来来来来来来来来********************* .. जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठ वग्गा पण्णत्ता। पढमस्स णं भंते! वग्गस्स अंतगडदसाणं समजेणं जाव संपत्तेणं कइ अज्झयणा पण्णत्ता?
एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता तंजहा - गाहा - गोयम समुद्द सागर, गंभीरे चेव होइ थिमिए य।
. अयले कंपिल्ले खलु, अक्खोभ पसेणई विण्हू॥१॥ कठिन शब्दार्थ - अट्ठमस्स अंगस्स - आठवें अंग का, अट्ठ - आठ, वग्गा - वर्ग, अज्झयणा - अध्ययन
भावार्थ - जम्बूस्वामी के उपर्युक्त प्रश्न का उत्तर देते हुए आर्य सुधर्मा स्वामी फरमाते हैं कि - हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने ट्वें अंग अन्तकृतदशा सूत्र के आठ वर्ग कहे हैं। __ हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अन्तकृतदशा नामक वें अंग में आठ वर्गों का प्रतिपादन किया है। उनमें से प्रथम वर्ग के कितने अध्ययन कहे हैं?
हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अन्तकृतदशा नामक वें अंग के प्रथम वर्ग में दस अध्ययन कहे हैं। वे इस प्रकार हैं - १. गौतम २. समुद्र ३. सागर ४. गम्भीर ५. स्तिमित ६. अचल ७. कम्पिल ८. अक्षोभ ६. प्रसेनजित और १०. विष्णुकुमार।
विवेचन - अध्ययनों के समूह को 'वर्ग' कहते हैं। अंतगडदशा सूत्र में आठ वर्ग हैं। प्रथम वर्ग के गौतम आदि दस अध्ययन कहे हैं। ये दसों राजकुमार थे। ...
द्वारिका नगरी का वर्णन
जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा-गोयम जाव विण्ह।
पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं समजेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई णामं णयरी होत्था,
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