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अनेकान्त-57/1-2
उदयन को पकड़ने के लिए राजा प्रद्योत द्वारा रचे गए। कृत्रिम हाथी के षड्यन्त्र का उल्लेख प्रतिज्ञायौगन्धरायण नाटक से मिलता है। मुद्राराक्षस से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त के शयनकक्ष में प्रहार करने के उद्देश्य से छिपे बैठे बीभत्सक को चाणक्य के द्वारा पहचान लिये जाने के बाद वहीं समाप्त कर दिया गया था। चन्द्रगुप्त के लिए नियुक्त वैद्य अभयदत्त द्वारा बनयी गयी विषयुक्त औषधि को भी चाणक्य द्वारा सन्देह होने पर उसी वैद्य को पिलाकर उसकी इहलीला समाप्त कर दी गयी थी। अनेक अवसरों पर राजाओं तथा राजपरिवारों के सदस्यों की हत्या करने के लिए विषकन्याओं का उल्लेख मिलता है। इस प्रकार प्राचीन भारतीय राजाओं के जीवन को विभिन्न षड्यन्त्रों से बचाने के लिए विविध प्रयत्न करते पड़ते थे, जिस कारण राजाओं को अपनी जीवन रक्षा के प्रति सचेत रहें हुए विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता था।
राजाओं को राज्य में विप्लव अथवा आन्तरिक अशान्ति की चिन्ता सदा बनी रहती थी। क्योंकि विभिन्न अवसरों पर षड्यन्त्रकारी, विद्रोही अथवा राजा से किसी कारण बदला लेने को उद्यत व्यक्ति एक साथ एकत्र होकर राज्य के विरुद्ध षड्यन्त्र रचते थे, इस प्रकार के सम्भावित खतरों से राज्य की रक्षा करने एवं सत्ता की सुदृढ़ता बनाये रखने की समस्या राजा के सम्मुख सदैव उपस्थित रहती थी। राजाओं के सम्मुख अपनी सेनाओं को संगठित रखने एवं उसको षड्यन्त्रकारियों की कुदृष्टि से बचाए रखने की स्वाभाविक समस्याएँ बनी रहती थी, क्योंकि राज्य की सुरक्षा सैन्य-बल पर ही आधारित थी। प्रतिज्ञायौगन्धरायण नाटक में कहा गया है कि किसी राजा के लिए सेना में फूट पड़ना चिन्ता का विषय होता है, क्योंकि अविश्वासी सेना कलत्र के समान अनुपयोगी है।
सैन्य-बल के आधार पर ही राजा शत्रु पक्ष से अपनी तथा अपने राज्य की रक्षा करता था। अतः सैन्य-संगठन को समय-समय बदलना उसको अनुशासित रखना भी राजा की एक बड़ी समस्या थी। मृच्छकटिक में कहा गया है कि छोटा किन्तु अनुशासित सेना से युक्त सबल शासक भी विशाल राज्य के निर्बल शासक को सुगमता से अपने अधीन कर लेता है। राजा के प्रति