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अनेकान्त-57/1-2
तथा पितृ-ऋण के बारे में सोचना उनके लिए कुछ कम कष्टकारी नहीं था।" राजा दुष्यन्त का निःसंतान होने के कारण अपने पितरों का विचार कर सोचते-सोचते बेहोश हो जाना उनकी मनोव्यथा को परिलक्षित करता है। पारिवारिक समस्याओं से घिरे राजा और सामान्य गृहस्थ में कोई विशेष अन्तर नहीं होता क्योंकि अपने परिवार के मध्य राजा पिता, पति, पुत्र, भाई आदि सभी स्थिति में रहता है और समय-समय पर किसी न किसी पारिवारिक दायित्व के निर्वाह एवं समस्याओं में घिर जाता है। वासवदत्ता की मुत्यु का समाचार मिलने पर उदयन का धूलि-धूसरित होकर विलाप करना इसकी ओर इंगित करता है।
दृश्यकाव्य दूतवाक्य में जिस प्रकार धृतराष्ट्र को कौरवों और पाण्डवों के बीच घिरा हुआं बताया गया है, निःसन्देह वह उसके लिए पारिवारिक चिन्ता का विषय था।" अपने पुत्र-पुत्रियों के विवाह-सम्बन्ध को लेकर भी राजा का चिन्तित और शोक-मग्न रहना एक सर्वमान्य समस्या का द्योतक था। वासवदत्ता के अपहरण की सूचना पाकर छत से कूदकर प्राण देने को तत्पर रानी अंगारवती को देखकर राजा प्रद्योत. का उदयन और वासवदत्ता का संबंध स्वीकार करके उनके विवाह की अनुमति देना निश्चित रूप से हारे हुए एक पिता राजा की समस्या थी। पुत्री के विवाह एवं उसके लिए सुयोग्य वर की तलाश राजा प्रद्योत के लिए एक गहन चिन्ता का विषय बन गयी थी। अपनी पुत्री के लिए समस्त गुणों से युक्त वर की तलाश में राजा चिन्तामग्न था और वह यह निश्चित नहीं कर पा रहा था कि अपनी कन्या का विवाह-संबंध किस राजकुमार के साथ करे। अधिक आयु की पुत्री का विवाह सुयोग्य वर के न मिलने के कारण राजा की बड़ी समस्या बनी रहती थी। कामप्रिय उदयन के समक्ष उसकी पत्नी ही एक बड़ी समस्या बनकर उभरती है। रानी द्वारा स्वयं राजा को रंगे हाथों पकड़ना तथा सागरिका और विदूषक को क्रोधपूर्वक बंधवाकर अपने साथ ले जाना राजा के लिए एक ऐसी समस्या थी कि वह सर्वशक्तिशाली होते हुए भी कुछ नहीं कर सका।।6 राजपुत्रों की समुचित शिक्षा की व्यवस्था एवं राजाओं के अनुरूप विभिन्न कलाओं में उन्हें दक्षता प्रदान कराने की विकट समस्या भी राजाओं के सम्मुख बनी रहती थी।