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अनेकान्त-57/3-4
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पूर्ण सुरक्षा के साथ रहने की आज्ञा दी तथा अपने सेवको को चम्पा बहिन की दिनचर्या के बारे में पूर्ण जानकारी देने का आदेश दिया। एक माह बाद राजा को उसके आचरण का पता चला। बादशाह आश्चर्यचकित हो गया तथा चम्पा बहिन से पूछा तुम ऐसा क्यों करती हो। उसने कहा मैं अपने आत्मकल्याण हेतु गुरु के आदेशो से करती हूँ तब से अकबर ने जैन गुरुओं से सम्पर्क किया। बस यहीं से अकबर के मन में जैन आचार्यो के दर्शन की जिज्ञासा हुई । उनको आगरा आने का निमन्त्रण दिया । उस समय अहमदाबाद में हरिविजय सूरी विराजमान थे। राजा के अनुरोध पर ज्येष्ठ सुदी 13 संवत् 1634 (सन् 1582) को आचार्य हरिविजयसूरि फतेहपुरसीकरी पहुँच गये। वह 13 विद्वानों के साथ अकबर के दरबार में पधारे । बादशाह ने रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठने के लिए अनुरोध किया । आचार्य ने कहा जैन शास्त्रों में केवली (सर्वज्ञ) द्वारा अहिंसा वादियो के लिए वस्त्र आदि पर पाँव रखने की भी मनाही है । हमारा आचरण देखकर चलना व बैठना है। जिससे किसी जीव को दुःख ना हो। जीवो के प्रति ऐसी दया देखकर राजा आश्चर्य में पड़ गया । उसने मन में सोचा कि रोज सफाई होती है जीव नहीं हैं उसने गलीचे को थोड़ा उठाया तो चींटिया दिखाई दीं । त्यागियों के लिए वस्त्र तथा धातु को स्पर्श करना आचरण के विरूद्ध है । गुरु वह होते है जो पाँच महाव्रतो का सत्य, अहिंसा, आचार्य, ब्रहमचर्य और अपरिग्रह का पालन करते हैं तथा स्वभाव रूप सामयिक में हमेशा लीन रहते है । जनता को धर्म का उपदेश तथा जनकल्याण की बातों से अवगत कराते हैं। वह किसी वाहन गाड़ी-घोडा, रथ, ऊँट का भी उपयोग नहीं करते । मन-वचन-काया से किसी जीव को कष्ट नहीं पहुँचाते तथा 5 इन्द्रियों को वश में करते हैं। सम्राट से अहिंसा, दया के बारे में चर्चा हुई । हिंसा व मांसाहार करने वाला पाप का भोगी होता है। मारने वाला, मांस खाने वाला, पकाने वाला, बेचने वाला, खरीदने वाला, अनुमति देने वाला ये 'सभी पाप के भागीदार होते हैं। अहिंसा के बारे में विस्तार से चर्चा हुई। शंका समाधान हुआ। इससे अकबर के ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा अकबर ने विशुद्धता एवं चारित्र से प्रभावित होकर आचार्यों से आगरा में ही चार्तुमास करने का अनुरोध किया ।