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अनेकान्त-57/3-4
और प्रत्यक्ष को झूठ कहना उचित नहीं है, इसलिए वस्तु सर्वथा अभावरूप नहीं
इस प्रकार सर्वथा एकान्त रूप वस्तु का स्वरूप नहीं है। वस्तु उस स्वरूप भी है और उस स्वरूप नहीं भी है। वस्तु द्रव्य की अपेक्षा नित्य है और पर्याय पलटने की अपेक्षा क्षण-विनश्वर है। ज्ञान में भासित होने की अपेक्षा ज्ञानमात्र है। बाह्य सत्तारूप वस्तुओं की अपेक्षा ज्ञानमात्र नहीं है, बाह्य वस्तु भी है। परद्रव्य-क्षेत्र काल-भाव की अपेक्षा नास्तिरूप होने से अभावरूप है और स्वद्रव्य क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा अस्तिरूप होने से अभावरूप नहीं है सद्भाव रूप है। इस प्रकार अनादि-निधन अनेकान्त रूप वस्तु का स्वरूप है।
एक पदार्थ में उक्त अनेकान्त रूप घटित होता है। जैसे-एक जीव-चेतनत्वादि भावों की अपेक्षा नित्य भी है और नर-नारकादि पर्यायों की अपेक्षा अनित्य भी है। ज्ञान में प्रतिभासित जीवन के आकार की अपेक्षा ज्ञानमात्र भी है। जीव अपने अस्तित्व को लिए हुए स्वतंत्र पदार्थ भी है। पुदगल आदि के द्रव्य-क्षेत्र, काल भाव में जीव का सद्भाव भी है। इस प्रकार जैसे जीव अनेकान्त स्वरूप एक पदार्थ है, वैसे ही सभी पदार्थ अनादि निधन अनेक अपेक्षाओं से उस रूप भी है और उसरूप नहीं भी है। अतः जैसा वस्तु का स्वरूप है वैसा ही मानने पर सम्यग्ज्ञान होता है, इसलिए वैसा ही मानना चाहिए। आचार्य गुणभद्रस्वामी ने वस्तु का अनेक अपेक्षाओं से अनेक स्वरूप बताते हुए कहा है कि- “वस्तु सर्वथा नित्य अर्थात स्थिर नहीं है, और सर्वथा क्षणिक अर्थात विनाशी भी नहीं है। सर्वथा ज्ञानमात्र नहीं है और सर्वथा अभावरूप भी नहीं है, क्योंकि सर्वथा अखण्ड एक ही धर्मरूप प्रतिभासित होने में विरोध है, अविरोध रूप से ऐसा भासित नहीं होता क्योंकि वस्तु प्रतिसमय उस रूप (अपने स्वरूप) भी है और उस रूप नहीं भी है। वस्तु का अनादिनिधन स्वरूप ऐसा ही है। जैसे एक पदार्थ ऐसा अनेकान्त रूप भासित होता है, वैसे ही सभी पदार्थो का स्वरूप जानना चाहिए।"
जिस समय केवल वस्तु दृष्टिगत होती है और परिणाम दृष्टिगत नहीं होता उस समय द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा सर्व वस्तु नित्य है। जिस समय