Book Title: Anekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 265
________________ 128 अनेकान्त-57/3-२ 14. आचार्य गुणभद्रस्वामी, आत्मानुशासन 173 15 पंचाध्यायी पूर्व, श्लोक संख्या 339 16. पंचाध्यायी पूर्व, श्लोक संख्या 332, 442 17. नयचक्र, श्रुतभवन, पृष्ठ 65-67 -श्री दि. जैन श्रमण संस्कृति संस्थान वीरोदय नगर, सांगानेर, जयपुर-राजस्थान - - - - - - - - - -- - - - - "ते उण ण दिट्ठ समओ। विहयइ सच्चे व अलीए वा।।" -जयधवला 1/233 । अनेकान्त रूप समय के ज्ञाता पुरुष 'यह नय सच्चा है, यह नय। | झूठा' ऐसा विभाग नहीं करते हैं।

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