Book Title: Anekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 246
________________ अनेकान्त-57/3-4 109 नैगमदृष्टि या संकल्पदृष्टि (Imaginary View) से देखने वाले वस्तु की भूत और भावी अवस्था अनुपस्थित होते हुए भी, संकल्प शक्ति द्वारा उपादान और अयोजन की सदृश्यता और विभन्न कालिक अवस्थाओं की विशेषताओं को संयोजन करते हुए वस्तु को वर्तमान में त्रिकालवर्ती सामान्य-विशेषरूप देखते हैं । यह दृष्टि ही कवि लोगों की दृष्टि है। ___ नैय्यायिकदृष्टि (Logical View) से देखने वाले वस्तु को सम्बन्ध द्वारा संकलित विभिन्न सत्ताओं की एक संगृहीता व्यवस्था मानते हैं। उनका मूलसिद्धान्त यह है कि प्रत्येक अनुभूति के अनुरूप कोई सत्ता जरूर है, जिसके कारण अनुभूति होती है। चूंकि ये अनुभूतियाँ सप्त मूल वर्गों में विभक्त हो सकती हैं-द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, सम्बन्ध (समवाय ?) और अभाव। अतः सत्य का इन सात पदार्थो से निर्माण हुआ है। यह दृष्टि ही वैशेषिक और न्यायदर्शन को अभिप्रेत है। __ अनुभूति के शब्दात्मक निर्वाचन पर भी न्यायविधि से विचार करने पर हम उपर्युक्त प्रकार के ही निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। संसार में वाक्य-रचना इसीलिये अर्थद्योतक है कि वह अर्थ वा सत्यानुभूति के अनुरूप है। वह सत्यरचना का प्रतिबिम्ब है। जैसे वाक्य, कर्ता, क्रिया, विशेषण सूचक शब्दों वा प्रत्ययों से संगृहीत एक शब्द-समूह है वैसे ही वस्तु भी द्रव्य, गुण, कर्म पदार्थो का समवाय-सम्बन्ध से संकलित विभिन्न सत्ताओं का समूह हैं। ___ वर्तमान इन्द्रियबोध को महत्ता देने वाले ऋजुसूत्रदृष्टि (Physical View) वाले वस्तु को निरन्तर उदय में आने वाली, अनित्य पर्यायों, भावों और क्रियाओं की एक शृङ्खला मात्र अनुभव करते हैं। वे उस उद्भव के उपादान कारण रूप किसी नित्य आधार को नहीं देख पाते। क्योंकि वे वस्तु की भूत तथा भावी अवस्था को लक्ष्य में न लाकर केवल उसकी वर्तमान अवस्था को ही लक्ष्य बनाते हैं। उनका कहना है कि चूंकि इन्द्रियों द्वारा जो कछ भी बाह्यजगत का बोध होता है, वह ज्ञेय पदार्थ के शृङ्खलाबद्ध विकारों का फल है, इसलिये वस्तु परिणामों की शृङ्खलामात्र है। यह दृष्टि ही क्षणिकवादी बौद्ध दार्शनिकों की है । यही दृष्टि आधुनिक भूतविद्याविज्ञों की है।

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