Book Title: Anekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 245
________________ 108 अनेकान्त-57/3-4 (object) को ही सत्य मानते हैं और अनुभावक आत्मा (Subject) को स्थूल जड़ की ही एक अभिव्यक्ति समझते हैं। यह दृष्टि ही जड़वाद की आधार है। वे लोग, जगत में नियमानुशसित व्यवस्था का अनुभव करते हैं, प्रत्येक प्राकृतिक अभिव्यक्ति को विशेष कारणों का कार्य बतलाते हैं, उन कारणों में एक क्रम और नियम देखते हैं और उन कारणों पर विजय पाने से अभिव्यक्तियों पर विजय पाने का दावा करते हैं। उनके लिये अभिव्यक्ति और कारणों का कार्यकारण सम्बन्ध इतना निश्चित और नियमित है कि ज्योतिषज्ञ, शकुनविज्ञ, सामुद्रिकज्ञ आदि नियत विद्याओं के जानने वाले वैज्ञानिक, विशेष हेतुओं को देखकर, भविष्य में होने वाली घटनाओं तक को बतला देने में अपने को समर्थ मानते हैं। सच पूछिये तो यह कार्यकारण सम्बन्ध (Law of causation) ही इन तमाम विज्ञानों का आधार है। ___ अनुभावकदृष्टि (Subjective outlook) को ही महत्ता देने वाले तत्त्वज्ञ आत्मा को ही सर्वस्व सत्य मानते हैं। ज्ञान-द्वारा अनुभव में आने वाले जगत को स्वप्नतुल्य मोहग्रस्त ज्ञान की ही सृष्टि मानते हैं। उनके विचार में ज्ञान से बाहर अनुभव्य-जगत (Objective reality) की अपनी कोई स्वतः सिद्ध सत्त नहीं है। यह दृष्अि ही अनुभव-मात्रवाद (Idealism) की जननी है और शंकर के अद्वैतवाद का आधार है। व्यवहारदृष्टि (Practical View) से देखने वाले चार्वाक लोग उन ही तत्त्वों को सत्य मानते हैं जो वर्तमान लौकिक जीवन के लिये व्यवहार्य और उपयोगी हैं। इस दृष्टि से देखने वालों के लिये परलोक कोई चीज नहीं। उन अपराधों और परोपकारी कार्यो के अतिरिक्त, जो समाज और राष्ट्र-द्वारा दण्डनीय और स्तुत्य हैं, पुण्य-पाप और कोई वस्तु नहीं। कञ्चन और कामिनी ही आनन्द की वस्तुएं हैं। वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी ही परमतत्त्व हैं। वे ही प्रत्येक वस्तु के जनक और आधार हैं। मृत्युजीवन का अन्त है। इन्द्रिय बोध ही ज्ञान है-इसके अतिरिक्त और प्रकार का ज्ञान केवल भ्रममात्र है। इन्द्रिय बोध से अनुभव में आने वाली प्रकृति ही सत्य है। यह दृष्टि ही सामाजिक और राजनैतिक अनुशासन की दृष्टि है।

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