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अनेकान्त-57/1-2
गया है। अतः यहाँ पर रूपक अलंकार है। ___ अपहुति- जहाँ पर प्रकृत का निषेध करके उसमें अप्रकृत की स्थापना की जाती है, वहाँ अपहृति अलंकार होता है। निरञ्जनशतक में अपहुति अलंकार का प्रयोग दृष्टिगत होता है। यथा
असितकोटिमिता अमिता तके नहि कचा अलिमास्तव तात के। वरतपोऽनलतो बहिरागता सघनधूम्रनिषेण हि रागता।।
-निरंजनशतक, 14 यहाँ पर भगवान के काले केशों का निषेध करके उन पर ध्यानाग्नि में जलाने पर राग के धुआँ की स्थापना की गई है। अतः अपहुति अलंकार है। (धूम के स्थान पर धूम्र शब्द का प्रयोग चिन्त्य है)।
निदर्शना- जहाँ वस्तु का अनुपपद्यमान सम्बन्ध उपमा में पर्यवसित हो जाता है, वहाँ निदर्शना नामक अलंकार होता है। यथा
स्ततिरियं तव येन विधीयते तमभयावतो न विधी यते!। गजगणोऽपि गुरुगजवैरिणं नखबलैः किमटेद् विभवैरिनम् ।।
-निरंजनशतक, 8 अर्थात् जिस बुद्धिमान् के द्वारा आपकी यह स्तुति की जाती है उसके पास दोनों प्रकार के कर्म नहीं आते हैं। क्या हाथियों का समूह स्थल होने पर भी नखबल के वैभव के कारण वन के राजा सिंह के पास जाता है?
यहाँ पर पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध के वाक्यार्थ उपमेय-उपमान भाव में पर्यवसित हो जाते हैं। अतः निदर्शना अलंकार है।
दृष्टान्त- जहाँ पर उपमान उपमेय आदि का बिम्बप्रतिबिम्ब भाव होता है, वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है। आ. विद्यासागर जी ने उपदेशात्मक उक्तियों को प्रभावशाली बनाने के लिए कहीं-कहीं दृष्टान्त अलंकार का आश्रय लिया है। यथा