________________
अनेकान्त-57/3-4
सुखी-दुःखी मानती हैं। जबकि यथार्थ में आत्मा कर्मो से अबद्ध-अस्पृष्ट, पयार्यो से द्रव्य, चलाचलता रहित, विशेष रहित और क्रोधादि भाव कर्मो से असंयुक्त पृथक हैं। इस प्रकार संसार दुःख का मूल पदार्थो का अयथार्थ ज्ञान एवं उससे उत्पन्न आत्म विस्मृति है।
उक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि संसार में दुःख का मूल जीवादि पदार्थों के प्रति अज्ञान-अश्रद्धान है तथा मोक्ष और मोक्ष मार्ग का आधार पदार्थो-द्रव्यों-तत्त्वों का ज्ञान एवं भाव बोध है। इससे ही विद्यमान त्रिदोषमय पर-समय की प्रवृत्ति से आत्मीक, अविनाशी, अतीन्द्रिय आनंद की प्राप्ति शक्य है और उसी से कर्मों के संवर तथा निर्जरा के हेतु ज्ञान-ध्यान की परिणति फलीभूत होगी। इस परिप्रेक्षय में द्रव्य, अस्तिकाय, तत्त्व और पदार्थों का यर्थाथ स्वरूप समझना अपेक्षित है। सम्पूर्ण जैनागम में इनका विशद, सूक्ष्मग्राही वर्णन अनेकांत स्वरूप में अति वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तर्क-युक्ति पूर्वक किया गया है। आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों के निष्कर्ष इनके स्वरूप की पुष्टि करते हैं। इस दृष्टि से जैन-दर्शन का पदार्थ-विज्ञान विश्व की अमूल्य धरोहर है।
द्रव्य, तत्त्व और पदार्थों का स्वरूप एवं महत्त्व :
श्री माघनन्दि योगीन्द्र ने 'शास्त्रसार समुच्चय' शास्त्र के द्रव्यानुयोगवेद में निम्न चार सूत्रों का उल्लेख किया है1. षडू द्रव्याणि, 2. पञ्चास्तिकायाः, 3. सप्त तत्त्वानि, 4. नव पदार्थाः ___ इन सूत्रों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैषड् द्रव्याणि :- यह लोक द्रव्यों का समूह है। जो मूल पदार्थ अपनी क्रम नियमिति पर्याय को प्राप्त हो वह द्रव्य है। द्रव्य-उत्पाद, व्यय और ध्रौव्ययुक्त होता है। द्रव्य छः हैं-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल। इनमें जीव द्रव्य चेतन है शेष पांच द्रव्य अचेतन हैं। पुद्गल द्रव्य रूपी है, शेष पांच द्रव्य अरूपी हैं। दृश्यमान जगत में रूपी पुद्गल ही अनुभव में आ रहा है। पुद्गल में रूप, रस, गंध, वर्ण और स्पर्श गुण पाये जाते हैं। द्रव्य कर्म और