________________
अनेकान्त-57/3-4
था। दूती ने कंवर के मन की बात जानकर कहा कि सूर्य मन्दिर की जात (यात्रा) के बहाने होलिका का मिलन करा दूंगी।
दूती ने मनोरथ सेठ को पुत्री की बीमारी बताई तथा कहा कि सूर्य मन्दिर की जात (यात्रा) करने पर बीमारी मिटेगी। सेठ ने सूर्य मन्दिर ले जाने की स्वीकृति दे दी। दूती के साथ होलिका जात देने गयी तो कामपाल ने उसका हाथ पकड़ लिया। होलिका ने दूती से कहा- मैं विधवा हूँ-छूने योग्य नहीं हूं-मैं अग्नि में भस्म हो जाऊंगी
'म्हारो हाथ छिवण नहि जोग, हूँ रंडापड किणविधि जोग' दूती उसे पिता के घर ले गई-दूती के साथ सो रही होलिका ने सोचा कि दूती मेरी बदनामी कर देगी-अतः इसकी हत्या करूंगी-होलिका ने दूती को आग लगाकर मार दिया तथा आप स्वयं कंवर के साथ चली गई। मनोरथ सेठ ने समझा कि उसकी पुत्री जल गई।
दूती जलकर मरने से व्यंतरी हो गई और नगर वासियों को दुःखी किया। एक दिन दूती किसी के स्वप्न में आयी और कहने लगी-राज्य में सुख चाहते हो तो एक लंबी (ऊंची) लकड़ी के चारों ओर घास फूस लगाकर जलाओ और उस राख (भस्म) को मस्तक पर लगाओ इससे व्यंतरी शांत होगी यह कार्य फागुण शुक्लापूर्णिमा को ही होना है
ऊँचे काष्ठ को ही होली नाम दिया गया है-यथा । काठ एक ऊँचो अणिज्यो होली नाम ताहिका जाणज्यो घर आकार करउ सुदनाई फूसला कडी अधिकअणाई काठ फूस भसम तजु करौ राख ले सिरमादि धरौ थानै शांति हो इसी शप निश्चैकालिप्रजा की जाप।। सुणी बात मन माहि घरैड़ सर्व सर्व पति निश्चै करउ फागुण सुद 505 दिन होइ, होली बालणहो दिन जोइ।
नगर में व्याधि समाप्त होने पर कंवर होलिका के साथ कहीं अन्य प्रदेश में चला गया जहां काम क्रीडा में मग्न रहे। पर-स्त्री एवं पर-पुरुष के सेवन