________________
अनेकान्त-57/3-4
छाजलाल जी साह जयपुर में राज्य के सम्मानीय पद पर आसीन थे। उनके नाम से किशनपाल बाजार में गोदीकों के रास्ते में छाजूलाल साह की गली प्रसिद्ध है जिसमें आज भी उनकी विशाल हवेली मौजूद है तथा उनके वंशज श्री हरिशचन्द्रजी एवं कैलाशजी साह रह रहे हैं। छाजूलाल जी की बनवायी एक विशाल नसियां व कुआ दौसा जिला के सैंथल गांव में आज भी मौजूद नसियां में मन्दिर भी बना हुआ है।
कथा की नायिका ‘होलिका' है जो नगर सेठ मनोहर एवं लक्ष्मी मति सेठानी की अंतिम चौथी पुत्री है। विवाह के 4-5 दिन पश्चात् ही वैद्यव्य का पहाड़ टूट पड़ा। पिता अपने घर ले आता है-बहुत दुखी होता है-नीति शास्त्र भी कहते हैं
पुत्रोपि मूो विधवा च कन्या, शठं च मित्रं चपलं कलत्रं। विनास काले च दरिद्रतां च, विनासिना पंच दंहति देहं।।
पति विहीन विधवा का जीवन अभिशाप है। यौवन में भरपूर होलिका ने एक दिन एक सेठ-पुत्र कामपाल (कंवर) को देख कामातुर हो उठी। उधर कामपाल भी इसे देख मिलने का निच्छल हो उठा। कामाग्नि से ज्वलित होलिका ने खाना पीना छोड़ दिया और बीमार हो गई। कोई चिकित्सक के बीमारी हाथ नहीं लगी। बीमारी की खबर सुन तपस्विनी के भेष में दूती ने किसी भी प्रकार की बीमारी को ठीक करने की नगर में घोषणा कराई। दुःखी पिता की प्रार्थना स्वीकार कर दूती घर गई। होलिका से नजर मिलाकर बीमारी का कारण जान लिया और प्रकट में कह दिया कि मेरे सामने कोई बीमारी मुश्किल नहीं है। इसे अवश्य ठीक कर दूंगी। दूती के पूछने पर होलिका ने बताया कि मुझे कामपाल से मिला दो
सुणो वीनती मेरी, कामपाल की वांछाजेम। करों उपाव कंवर पै जाइ, ज्योमनवांछित भोगकराइ।। सुणि दूती विनवै तुम जोग, मेलौकुमरजाइ तुमरोग।। दूती तत्काल कामपाल (कंवर) के यहां गई, वह भी होलिका के लिये बेचैन