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ढूंढारी भाषा की एक प्राचीन कृति - होली की कथा
-अनूपचन्द न्यायतीर्थ अभी कुछ दिन पूर्व दिगम्बर जैन मन्दिर चौधरी पान छाजूलाल जी साह की गली जयपुर में हस्तलिखित ग्रंथ भण्डार को देखते समय छीतरठोलिया द्वारा रचित ढूंढारी भाषा की एक प्राचीन पद्य रचना 'होली की कथा' पर दृष्टि पड़ी। रचना के दोनों ओर के मिलाकर 14 पृष्ठ हैं आकार 14 x 5 इंच है, हासिया में दोनो तरफ 1 x 12, इंच की जगह छोड़ लाल स्याही की बोर्डर है। लिपि देवनागरी है। प्रत्येक पृष्ठ में 8 पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में काली स्याही से सांगानेरी कागज पर उच्च अक्षर हैं-लिखावट सुन्दर है। रचना ऐतिहासिक है। प्रारंभ में मंगलाचरण के साथ जयपुर नगर के वैभव तथा निवासियों की श्रावकों की जानकारी प्रस्तुत की है
प्रारंभ ऊँ नमोः श्री वीतरागाय नमः अथ होलिका चरित लिख्यते।।
चौपाई बंदों आदिनाथ जगसार, जा प्रसाद पाऊँ भवपार। वर्द्धमान की सेवा करौ, ज्यों संसार बहुरिनहि फिरौ।। 1।। सारदमाता तणे पसाई, होली कथा कहौं निरताई। पंडितजन हासौ मति करौ, भूलोअक्षर सोधि विद्वट्वरौ।। 2 ।। जंबूदीप जाणै सबकोइ तिहमै मेरु सुदर्शन होई। मेर भाग की दक्षिण दिसै, भरथ क्षेत्र महिपुर बसै ।। 3 ।।