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अनेकान्त-57/3-4
ताम्रपत्र लिखने का कार्य भी करता था, को अक्षपटलिक अथवा महाक्षपटलिक कहा गया है। सचिवालय में कार्य करने वाले छोटे कर्मचारियों को युक्त कहा गया है और उच्च पदाधिकारियों को उपयुक्त नाम दिया है। अशोककालीन कार्यालयों में काम करने वाले छोटे अधिकारियों अथवा क्लर्कों को युक्त कहा गया है, जो महामात्रों और रज्जुकों के नीचे कार्य करते थे । इनके अतिरिक्त एक मुद्राध्यक्ष नाम का अधिकारी होता था जो सरकारी कागजों के रखरखाव और राजकीय मोहर का संरक्षक होता था । " राजतरंगिणी में केन्द्रीय शासनालय के कर्मचारियों द्वारा राजाओं के आदेश लेखबद्ध किये जाने की जानकारी के साथ चाहमान और चालुक्य शासन में सचिवालय का उल्लेख प्राप्त होता है जिसे 'श्रीकरण' कहा जाता था । "
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प्राचीन भारत में अधिकांशतः नृपतन्त्र शासन व्यवस्था ही प्रचलित थी, जिस कारण राजमहल अथवा राज- प्रासाद का अत्यधिक महत्त्व था अतः उसकी व्यवस्था के लिए एक पृथक् विभाग अनिवार्य था। प्राचीन भारतीय साहित्य में राजप्रसाद सम्बन्धी विस्तृत विवरण प्राप्त होते हैं । दृश्यकाव्यों में राजप्रसाद के लिए नृपभवन, नृपगृह, राजकुल आदि अभिधानों का प्रयोग किया गया है । " सामान्य गृहों और सार्वजनिक भवनों की तुलना में राजप्रासादों की एक निराली ही शान होती थी जिसकी व्यवस्था और रखरखाव के लिए राजसेवकों का बड़ा वर्ग एक अलग ही विभाग के आधीन कार्यरत रहता था। राजमहल और उसके सम्पूर्ण अहाते की देखरेख के लिए अत्यन्त विश्वासपात्र अधिकारी की नियुक्ति का उल्लेख मिलता है, जिसे 'सौधगेहाधिप' नाम से जाना जाता था । 16 बंगाल में इस अधिकारी को 'आवसथिक' कहा जाता था । " राजप्रसाद के दो प्रमुख विभाग होते थे एक अन्तर्भाग और दूसरा बहिर्भाग । अन्तर्भाग में अन्तःपुर या राजकीय कार्य होता था और बहिर्भाग में राजकीय गृह और सभा भवन आदि होते थे । राजप्रसाद और उसके शिविर में आवागमन का नियन्त्रण ' द्वारपाल' नामक अधिकारी द्वारा किया जाता था। किसी भी प्रकार से प्रासाद में प्रवेश के लिए सर्वप्रथम द्वारपाल से ही अनुमति प्राप्त करनी होती थी और इसके लिए प्रवेशपत्र प्राप्त करना होता था, जिस पर मुद्राधिप नामक अधिकारी की मोहर आवश्यक थी ।