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वैयाकरण पूज्यपाद और सर्वार्थसिद्धि
____-डॉ. कमलेश कुमार जैन आचार्य पूज्यपाद विक्रम की छठी शताब्दी के विद्वान् हैं। ये पूज्यपाद, जिनेन्द्रबुद्धि और देवनन्दी अथवा देव इन तीन नामों से जाने जाते हैं। परवर्ती आचार्यो ने इन्हीं नामों से उनका स्मरण एवं गुणगान किया है। वस्तुतः आचार्य पूज्यपाद का मूल नाम देवनन्दी है, किन्तु बुद्धि की महत्ता के कारण वे जिनेन्द्रबुद्धि कहलाये एवं देवताओं द्वारा उनके पादयुगल पूजे जाने के कारण वे पूज्यपाद कहलाये।' और यही प्रतिष्ठापरक नाम उनका सर्वाधिक प्रचलित एवं मान्य है। ___आचार्य पूज्यपाद के पिता का नाम माधवभट्ट और माता का नाम श्रीदेवी था। ये कर्नाटक स्थित 'कोले' नामक ग्राम के निवासी थे और ब्राह्मण कुल के भूषण थे। बाद में इनके पिता माधवभट्ट ने अपनी पत्नी श्रीदेवी के आग्रह से जैनधर्म स्वीकार कर लिया था और आ. पूज्यपाद भी परम्परा से जैनधर्म में दीक्षित हो गये।
आचार्य पूज्यपाद एक उत्कृष्ट वैयाकरण के साथ ही महान् कवि और दार्शनिक भी हैं। उनके द्वारा लिखे गये इष्टोपदेश, समाधितन्त्र, दशभक्तियों (उपलब्ध सात भक्तियों) एवं सिद्धिप्रिय स्तोत्र आदि के माध्यम से उनके कविरूप का दर्शन होता है। साथ ही 'सारसंग्रह' ' नामक दार्शनिक ग्रन्थ (जो आज अनुपलब्ध है) तथा सर्वार्थसिद्धि में पूर्वपक्ष के रूप उल्लिखित नैयायिक, वैशेषिक, साँख्य, वेदान्त और बौद्धदर्शन आदि विभिन्न दार्शनिक प्रस्थानों से उनके दार्शनिक रूप का ज्ञान होता है। ___आचार्य पूज्यपाद में विद्वत्ता की दृष्टि से एकसाथ वैयाकरण, कवि और दार्शनिक का जैसा समवाय दिखलाई देता है, वैसा ही विषय की दृष्टि से विचार करें तो वे अध्यात्म-शास्त्र के बहुत गम्भीर और प्रौढ़ अध्येता हैं। आचार्य कुन्दकुन्द की परम्परा के आचार्य होने के कारण आचार्य पूज्यपाद पर