Book Title: Anekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 126
________________ अनेकान्त-57/1-2 123 को संक्षिप्त करके अथवा उस पर से समुद्धृत करके लिखे गये हैं। और वह मूलागम द्वादशांगश्रुत के अग्रायणीय-पूर्वस्थित पंचम वस्तु का चौथा प्राभृत है। इस तरह इस षट्खंडागम श्रुत के मूलतंत्रकार श्री वर्द्धमान महावीर, अनुतंत्रकार गौतमस्वामी और उपतंत्रकार भूतबलिपुष्पदन्तादि आचार्यों को समझना चाहिये। भूतबलि-पुष्पदन्त में पुष्पदन्ताचार्य सिर्फ 'सत्प्ररूपण' नामक प्रथम अधिकार के कर्ता हैं, शेष सम्पूर्ण ग्रन्थ के रचियता भूतबलि आचार्य हैं। ग्रन्थ का श्लोक-परिमाण इन्द्रनन्दि-श्रुतावतार के कथनानुसार 36 हजार है, जिनमें से 6 हजार संख्या पांच खण्डों की और शेष महाबन्ध खण्ड की है; और ब्रह्म हेमचन्द्र के श्रुतस्कन्धानुसार 30 हजार है। यह तो हुई धवला के आधारभूत षट्खण्डागम श्रुत के अवतार की कथा; अब जयधवला के आधारभूत 'कसायपाहुड' श्रुत को लीजिये, जिसे 'पेज्जदोस पाहुड' भी कहते हैं। जयधवला में इसके अवतार की प्रारम्भिक कथा तो प्रायः वही दी है जो महावीर से आचारांग-धारी लोहाचार्य तक ऊपर वर्णन की गई है-मुख्य भेद इतना ही है कि यहां पर एक-एक विषय के आचार्यो का काल भी साथ में निर्दिष्ट कर दिया गया है, जबकि 'धवला' में उसे अन्यत्र ‘वेदना' खण्ड का निर्देश करते हुए दिया है। दूसरा भेद आचार्यों के कुछ नामों का है। जयधवला में गौतमस्वामी के बाद लोहाचार्य का नाम न देकर सुधर्माचार्य का नाम दिया है, जो कि वीर भगवान् के बाद होने वाले तीन केवलियों में से द्वितीय केवली का प्रसिद्ध नाम है। इसी प्रकार जयपाल की जगह जसपाल और जसबाहू की जगह जयबाहू नाम का उल्लेख किया है। प्राचीन लिपियों को देखते हुए 'जस' और 'जय' के लिखने में बहुत ही कम अन्तर प्रतीत होता है इससे साधारण लेखकों द्वारा 'जस' का 'जय' और 'जय' का 'जस' समझ लिया जाना कोई बड़ी बात नहीं है। हॉ, लोहाचार्य और सुधर्माचार्य का अन्तर अवश्य ही चिन्तनीय है। जयधवला में कहीं कहीं गौतम और जम्बूस्वामी के मध्य लोहाचार्य का नाम दिया है; जैसा कि उसके 'अणुभागविहत्ति' प्रकरण के निम्न अंश से प्रकट है : “विउलगिरिमत्थयत्थवढ्ढमाणदिवायरादोविणिग्गमियगोदम

Loading...

Page Navigation
1 ... 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268