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अनेकान्त-57/3-4
12. भय
सात भयों से डरते हुए वन्दना करना। 13. ऋद्धिगौरव
परिवार की ऋद्धि के गर्व से वन्दना करना। 14. लज्जित
लज्जाकुलित हो वन्दना करना। 15. प्रतिकूल
गुरु के प्रतिकूल हो वन्दना करना। 16. शब्द
वचनालाप करते हुए वन्दना करना। 17. प्रदुष्ट
क्रोधित होकर क्षमा न माँगकर वन्दना करना। 18. मनोदुष्ट
बताकर, तर्जनी घुमाते हुए वन्दना करना। 19. हसनोद्घट्टन हँसते हुए अंग रगड़ते हुए वन्दना करना। 20. भृकुटिकुटिल भौहें टेढ़ी करके वन्दना करना। 21. प्रविष्ट
अत्यन्त निकट जाकर वन्दना करना। 22. दृष्ट
देखने पर ठीक ढंग से न देखने पर यद्वा तद्वा
वंदना करना। 23. करमोचन
संघ में कर (Tax) मानकर वन्दना करना। 24. आलब्ध
उपकरण पाकर वन्दना करना। 25. हीन
अधूरी वन्दना करना। 26. पिधायक
सूत्र कथित अर्थ को ढककर वन्दना करना। 27. अदृष्ट
गुरु की दृष्टि वचाकर वन्दना करना। 28. अनालब्ध - उपकरण आदि पाने की इच्छा से वन्दना
करना। 29. मूक
- गूंगे के समान हुंकार करते हुए वन्दना करना। 30. दर्दुर
दूसरे की वन्दना को अपने शब्द से ढकते हुए
वन्दना करना। 31. अग्र __ - गुरु के ठीक आगे खड़े होकर वन्दना करना। 32. उत्तरचूलिक - जल्दी-जल्दी या क्रमभंग से वन्दना करना।
वन्दना करने वालों को उक्त बत्तीस दोष छोड़ना चाहिए। क्योंकि प्रयत्नपूर्वक दोषरहित की गई वन्दना खेती के समान शीघ्र ही अभीष्ट फल को