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अनेकान्त-57/1-2
23. इन्द्रनदिन्द-श्रुतावतार में ग्रन्थसमाप्ति और नामकरण का एक ही दिन विधान करके, उससे
दूसरे दिन रुखसत करना लिखा है। 24. यह गुजरात के भरोंच जिले का प्रसिद्ध नगर है। 25. इन्द्रनन्दि श्रुतावतार मे ऐसा उल्लेख न करके लिखा है कि खुद धरसेनाचार्य ने उन दोनो
मुनियों को 'कुरीश्वर' पत्तन भेज दिया था जहाँ वे 9 दिन में पहुंचे थे और उन्होंने वहीं आषाढ़
कृष्णा पंचमी को वर्षायोग ग्रहण किया था। 26. इन्द्रनन्दि-श्रुतावार में जिनपालित को पुष्पदन्त का भानजा लिखा है और दक्षिण की ओर
बिहार करते हुए दोनों मुनियों के करहाट पहुंचने पर उसके देखने का उल्लेख किया है। 27. इन्द्रनन्दि-श्रुतावतार में ‘त्र्यधिकाशीत्या युक्तं शतं' पाठ के द्वारा मूलसूत्रगाथाओं की संख्या
183 सूचित की है, जो ठीक नहीं है और समझने की किसी गलती पर निर्भर है। जयधवला
में 180 गाथाओं का खूब खुलासा किया गया है। 28. इन्द्रनन्दि-श्रुतावतार में लिखा है कि 'गुणधराचार्य ने इन गाथासूत्रों को रचकर स्वयं ही इनकी
व्याख्या नागहस्ती और आर्यमंशु को बतलाई।' इससे ऐतिहासिक कथन मे बहुत बड़ा अन्तर
पड़ जाता है। 29. इन्द्रनन्दि ने तो अपने श्रुतावतार मे यह स्पष्ट ही लिख दिया है कि इन गुणधर और
धरसेनाचार्य की गुरुपरम्परा का हाल हमें मालूम नही है; क्योंकि उसको बतलाने वाले शास्त्रों तथा मुनि-जनों का अभाव है।
- अनेकान्त 3/1 से उद्धृत
वीर सेवा मन्दिर, सरसावा, ता. 20-11-1939
प्रसिद्ध-सिद्धान्तागमस्तिमाली, समस्त वैय्याकरणाधिराजः। । गुणाकरस्तार्किक-चक्रवर्ती, प्रवादीसिंहो वरवीरसेनः।। ।
-धवला, सहारनपुर प्रति, पत्र-718 अर्थात्-श्री वीरसेनाचार्य प्रसिद्ध सिद्धान्तों-षट्खण्डागमादिकों को प्रकाशित करने वाले सूर्य थे, समस्त वैय्याकरण के
अधिपति थे, गुणों की खान थे, तार्किक चक्रवर्ती थे और | ! प्रवादिरूपी जजों के लिये सिंह-समान थे।
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