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पद्मपुराण के विविध संस्करण एवं पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य की सम्पादन कला का वैशिष्ट्य
- डॉ. जय कुमार जैन अद्यावधि उपलब्ध संस्कृत जैन पुराणों में रविषेणाचार्यकृत पद्मपुराण सर्वाधिक प्राचीन है। सात महाधिकारों, 123 पर्वो में विभक्त 18000 श्लोक प्रमाण यह ग्रन्थ भगवान् महावीर के निर्वाण के 120372 वर्ष बीत जाने पर लिखा गया था।' इस आधार पर यह 676 ई. के मई माह में विरचित सिद्ध होता है। जैन परम्परा में दाशरार्थ राम पद्म नाम से भी उल्लिखित हुए हैं तथा उनका यह नाम बहुप्रसिद्ध रहा है। अतः पद्मपुराण से आशय रामकथाविषयक पुराण है। 'पुरातनं पुराणं स्यात्' आचार्य जिनसेन जी के इस उल्लेख के अनुसार प्राचीन आख्यानों का नाम पुराण है।
श्री रविषेणाचार्यकृत पद्मपुराण को पुरानी हिन्दी के गद्य में सर्वप्रथम प्रस्तुत करने का गौरव बसवा (राजस्थान) निवासी पण्डित दौलतराम जी कासलीवाल को मिला। यह जैन जगत् में पद्मपुराण की भाषावचनिका के नाम से प्रसिद्ध है। यह जयपुर के आसपास की तत्कालीन लोक बोली ढूँढारी में लिखी गई है। दौलतराम जी अठारहवीं शताब्दी के विद्वान् हैं तथा उन्हें हिन्दी में गद्यविधा का जनक माना जा सकता है। क्योंकि इसके पूर्व गद्य में हिन्दी का कोई व्यवस्थित रूप नही मिलता है। श्री दौलतराम जी का पद्मपुराण यद्यपि रविषेणाचार्यकृत पद्मपुराण का यथावत् अनुवाद नही है, तथापि उसमें किसी घटनाक्रम को छोड़ा नहीं गया है। भले ही उन्होंने उसे आकर्षक बनाकर अपने भावों में प्रस्तुत किया हो। इसकी भाषा एकदम प्रवाहमयी एवं सहजग्राह्य है। एक उदाहरण देखें- "हे सेनापति! तू मेरे वचन रामलूं कहियो कि मेरे त्याग का विषाद आप न करणा, परम धीर्यपू अवलम्बन कर सदा प्रजा की रक्षा करियो। जैसे पिता पुत्र की रक्षा करे। आप महान्यायवंत हौ अर