________________
अनेकान्त-57/1-2
अनुमान प्रमाण का आश्रय लेकर सिद्ध किया जाता है। __वेदान्त दर्शन में सत्य के रूप में केवल ब्रह्म की सत्ता मानी गयी है। ब्रह्म के दो रूप हैं निर्गुण और सगुण । निर्गुण ब्रह्म सत्यज्ञानमनन्तं ब्रह्म के रूप में एवं सगुण ब्रह्म ईश्वर के रूप में माना गया है। रामानुज का दर्शन पूर्ण ईश्वरवादी है, इनका ईश्वर वेदान्त दर्शन के सगुण ब्रह्म के ही समान है। __वेदान्त तथा न्याय की ईश्वर की अवधारणाओं में मुख्य भेद यह है कि वेदान्त का ईश्वर संसार का निमित्त कारण भी है और उपादान कारण भी। जबकि न्याय वैशेषिक का ईश्वर संसार का केवल निमित्त कारण है, उपादान कारण नहीं। इस अंतर के होने पर भी न्याय-वैशेषिक और वेदान्त इस विषय में सहमत हैं कि सृष्टि सादि है और सष्टि की उत्पत्ति में ईश्वर का महत्त्वपूर्ण योगदान है। ये दोनों इस विषय में भी सहमत हैं कि वर्तमान सृष्टि भले ही सादि है किंतु परम्परा से सृष्टि अनादि है।
कोई लोग कर्मकृत विश्ववैचित्र्य को स्वीकार करते हुए भी कहते हैं-ईश्वर ही कर्मो के अनुसार इस अज्ञ जीव को विविध योनियों में पहुंचाकर दुःख और सुख देता है। महाभारत में लिखा है
अज्ञो जन्तुरनीशोऽयमात्मनः सुखदुःखयोः । ईश्वरप्रेरितो गच्छेत् स्वर्ग वा श्वभ्रमेव वा।। वनपर्व 30, 28 . आचार्य नेमिचन्द ने एक गाथा लिखी है
अण्णाणी हु अणीसो अप्पा तस्स य सुहं च दुक्खं च। सग्गं णिरयं गमणं सव्वं इसरकयं होदि ।। गोम्मटसार कर्मकाण्ड
आत्मा अज्ञानी है, असमर्थ है-कुछ करने में समर्थ नहीं है। उसका सुख, दुःख, स्वर्ग या नरक में जाना सब ईश्वर के अधीन है।
न्याय दर्शन का कहना है, कि मनुष्य के कर्म ब्रह्म के नियंत्रण में हैं तथा उसके सहयोग से फल उत्पन्न करते है। देह मनुष्य को अपने कर्मो के अनुसार मिलती है और सुख-दुःख का आधार देह ही है। देह की रचना नियति की