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१२, बर्व ४२, कि.१
बनेकान्त
के नाम उल्लिखित हैं। यहां का एक अन्य लेख राष्ट्रकूट के विविधरूप यक्ष-यक्षी, चौमुखी देवियां, गजलक्ष्मी, राज्यकाल के बाद का १३वीं शती का है जिसमे गुहा- अम्बिका आदि के रूप मे उकेरी गयी हैं जो काफी परिमाण मन्दिर निर्माता चक्रेश्वर की बड़ी प्रशंसा की गई है। में यहां मिलते हैं।
एलोरा पहाड़ी का सम्बन्ध चारणो से रहा होगा। दन्तिदुर्ग के बाद उसका चाचा कृष्ण प्रथम अकाल दक्षिण मे एक तिरुच्नत्तुमल नाम की एक और पहाड़ी है वर्ष शुभतुंग सिंहासन पर बैठा जिसने दक्षिणी कोकण में जिसका भी सम्बन्ध चारणो से जोड़ा गया है। ये चारण शिलाहार सामंतो को नियुक्त किया। उसी ने पर्वत काट कौन होंगे? यह प्रश्न अभी भी समाधान की अपेक्षा रखता कर ७६६ ई. में यह कैलाश मन्दिर बनबाया। राष्ट्रकूट है। लगता है, दक्षिण प्रदेश विद्याधरो का स्थान रहा है नरेश ध्रव की पत्नी चालुक्य राजकुमारी शीलभहारिका इसलिए उनको ही चारण कहा गया है। उन्ही विद्याधरों जनधर्मावलम्बी और उच्चकोटि की कवयित्री थी।
सन्दर्भ-सूची १. सेतु नर्मदा मध्य सार्घसप्तलक्ष दक्षिणापथं पालयामास १३. के. एन. दीक्षित, Journal of Asiatic Society विष्णुवर्धन अभिलेख, (Epi. Ind. Vel. IV page of Bengal, Numismatic Supplimate, ख 29, 305).
p. 159, संशोधन मुक्तावलि, मिराशी 2, page २. अगमदधिपतित्व यो महाराष्ट्रकाणाम् नवनति सहन 177-187.
ग्राम भाजां त्रयाणाम् (I.A.A.V. 8 P. 241). १४. संशोधन मुक्तावलि, मिराशी 1, p. 87. ३.प्राचीन महाराष्ट्र, डॉ० श्रीधर वेंकटेश केतकर भाग १५. Incriptions in C.P.& Beror, 16, p. 15. १, पृ० १६४।
१६. वही २६४, पृ० १५५। । ४. देखिये, जूनागढ़ में प्राप्त रुद्रदामन का अभिलेख ।
१७. वही, २६३, पृ० १५५, मोरेश्वर दीक्षित, पुरातत्व ५. अशोक शिलालेख तथा अमुलनार, परणार और
की रूपरेखा, पृ. २८। प्रयागदत्त शुक्ल, रविशकर श्रवणवेलगोल शिलालेख।
शुक्ल अभिनदन ग्रंथ साहित्य खंड पृ० १४ । विशेष ६. तिलोयपण्णत्ति, ४, १४, २१, श्रबणवेलगोल शिलालेख नं० १०८, हरिषेणकथाकोश १३१ ।
देखिए--विदर्भ का जैन पुरातत्त्व, डॉ० चन्द्रशेखर
गुप्त, जैनमिलन, दिसम्बर १६७०, पृ० ५७-५८ । ७. महावंश, पृ० ६७ देखिए लेखक का ग्रंथ Jainism ____in Buddhist Literature. प्रथम अध्याय ।
१८. Epi. Indica, Vol. 8, p. 82. ८. Epigraphy of Indica, Vol. 38, p. 167.
१६. Ancient Jain Hymns. p. 28. ६. रामेण अम्हा भवरणोत्तमाणि जिणिन्द
२०. अत्र पूव्वं अर्द्धच्छाला-परम-पूश्कल-स्थान-निवासिभ्यः चंदाण निवेसियाणि ।
भगवद् अर्हत् महाजिनेन्द्र देवतभ्यः एको भागः द्विती. तथेव तुगे विमलप्पमाणि तम्हा जणे रामगिरी प्रसिद्धो॥ ऽहंत प्रोक्त सद्धर्म-कारण-परस्य श्वेतपट-भटाश्रमण
-चालीसवां पर्व सधोपभोगाय तृतीयो निर्ग्रन्थ महाभमण सधोपभागाय १०. डॉ. मिराशी, मेघदूत मे रामगिरि अर्थात् रामटेक, ....... fleet, Sanskrit and old cannarese विदर्भ संशोधन मंडल, नागपुर ।
Inscriptions, 9. A. VII, p. 35; The Kada. ११. अनुग्रह अनेकानि सतसहसानि विसजति पोरजनपदं[1]
mba Kula, by George M. Moraes, p. 35. सतम च वसं [पसा] सतो वजिरघर' स मातुकपदे
२१. इन्द्र नन्दि श्रुतावतार, ६१-६६ । [कु]"म[1] अठमे च वसे महता सेन [1] गोरध
२२. जैन शिलालेख संग्रह,भाग ४, लेख न. ६१, पृ. ३६ । गिरि..." १२. Journal of the Royal Asiatic Society २३. भारतीय इतिहास एक दृष्टि, डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन,
ज्ञानपीठ, दिल्ली, १९६१ ।
p.329.