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.८, वर्ष ४२, कि०३
अनेकान्त
कथन किया गया है वह मब पण्डितमरण का कथन है। वालो को पुण्य होता है, तो साक्षात् क्षपक की वन्दना एव अर्थात् वे पण्डितमरण के भेद है ।
दर्शन करने वाले पुरुष को प्रचुर पुन्य का संचय क्यों नहीं समाधिमरण के कर्ता, कारयिता, अनमोदक और
होगा? अर्थात् अवश्य होगा।
___'जो तीव्र भक्ति सहित आराधक की सदा सेवावर्शकों को प्रशंसा:
वैयावृत्य करता है उस पुरुष की भी आराधना निर्विघ्न शिवार्य ने इस सल्लेखना के करने, कराने, देखने,
सम्पन्न होती है। अर्थात् वह भी समाधिपूर्वक मरण कर अनुमोदन करने, उसमें सहायक होने, आहार-औषध-स्था- उत्तम गति को प्राप्त होता है।' नादि देने तथा आदर-भक्ति प्रकट करने वालों को पुण्यशाली बतलाते हुए उनकी बड़ी प्रशसा की है। वे मिखते
सन्लेखना आत्म-घात नहीं है
__ अन्त मे यह कह देना आवश्यक है कि सल्लेखना को 'वे मुनि धन्य है, जिन्होने संघ के मध्य में जाकर आत्म-घात न समझ लिया जाय; क्योकि आत्मघात तीव्र समाधिमरण ग्रहण कर चार प्रकार (दर्शन, ज्ञान, चारित्र क्रोधादि के आवेश मे आकर या अज्ञानता वश शस्त्र-प्रयोग और तप) की नाराधनारूपी पताका को फहराया है। विष-भक्षण, अग्नि-प्रवेश, जल-प्रवेश, गिरि-पात आदि
'वे ही भाग्यशाली और ज्ञानी हैं तथा उन्होने समस्त घातक क्रियाओ से किया जाता है, जबकि इन क्रियाओं लाभ पाथा है, जिन्होने दुर्लभ भगवती आराधना (संल्ले- का और क्रोधादि के आवेश का मल्लेखना में प्रभाव है। खना) को प्राप्त किया है।'
सल्लेखना योजनानुमार शान्तिपूर्वक मरण है, जो जीवन ____ 'जिस आराधना को संसार मे महाप्रभावशाली व्यक्ति सम्बन्धी सुयोजना का एक अंग है। भी प्राप्त नहीं कर पाते, उस आराधना को जिन्होने पूर्ण
क्या जैनेतर दर्शन में यह सल्लेखना है ? रूप से प्राप्त किया, उनकी महिमा का वर्णन कौन कर
यह सल्लेखना जैन दर्शन के मिवाय अन्य दर्शनो मे सकता है ?
उपलब्ध नहीं होती। हा, योगसूत्र आदि मे ध्यानार्थ 'वे महानुभाब भी धन्य है, जो पूर्ण आदर और समस्त
समाधि का विस्तृत कथन अवश्य पाया जाता है। पर शक्ति के साथ क्षपक की आराधना कराते हैं ।
उसका अन्त.क्रिया से कोई सम्बन्ध नह। है । उसका प्रया'जो धर्मात्मा पुरुष क्षपक की आराधना में उपदेश,
__जन सिद्धियो के प्राप्त करने अथवा आत्म-साक्षात्कार आहार-पान, औषध व स्थानादि के दान द्वारा सहायक से है। वैदिक माहित्य में वर्णित सोलह सस्कारो मे एक होते है. वे भी समस्त आराधनाओं को निविघ्न पूर्ण करके 'अन्तयेष्टि-सस्कार आता है. जिसे ऐहिक जीवन के सिद्ध पद को प्राप्त होते हैं।'
अन्तिम अध्याय की समाप्ति कहा गया है और जिसका 'वे पुरुष भी पुण्यशाला है, कृतार्थ है, जो पापकमरूपा दूसरा वाम 'मृत्यु-सस्कार' है। इस सस्कार का अन्त.मैल को छटाने वाले क्षपकरूपी तीर्थ मे सम्पूर्ण भक्ति किया के माम:
क्रिया के साथ सम्बन्ध हो सकता था। किन्तु मृत्यु-सस्कार और आदर के साथ स्नान करते है। अर्थात् क्षपक के
सामाजिको अथवा सामान्य लोगो का किया जाता है, दर्शन, वन्दन और पूजन मे प्रवृत्त होते है।'
सिद्ध-महात्माओ, सन्यासियो या भिक्षुओ का नहीं, क्योकि ___ 'यदि पर्वत, नदी आदि स्थान तपोधनो से सेवित
उनका परिवार से कोई सम्बन्ध नही रहता और इसीलिए होने से 'तीर्थ' कहे जाते है और उनकी सभक्ति वन्दना
उन्हे अन्त्येष्टि-क्रिया की आवश्यकता नही रहती। की जाती है, तो तपोगुण की राशि क्षपक को 'तीर्थ' क्यो
उनका तो जल-निखात या भू-निखात किया जाता है। नही कहा जावेगा? अर्थात् उसकी वन्दना और दर्शन
यह भी ध्यान देने योग्य है कि हिन्दूधर्म मे अन्त्येष्टि की का भी वही फल प्राप्त होता है, जो तीर्थ-वन्दना का होता सम्पूर्ण क्रियाओ मे मत व्यक्ति के विषय-भोग तथा सुख
सुविधामो के लिए ही प्रार्थनाएं की जाती है। हमे उसके 'यदि पूर्व ऋषियों की प्रतिमाओं की वन्दना करने आध्यात्मिक लाभ अथवा मोक्ष के लिए इच्छा का बहुत