Book Title: Anekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 125
________________ जैन चम्पूकाव्य : एक परिचय 1) श्रीमती संगीता अग्रवाल काव्य के दृश्य व श्रव्य दोनो भेदो मे से श्रव्य काव्य चम्पू, बर्धमान चम्पू तथा महावीर तीर्थकर चम्पू भी हैं। के गद्य, पद्य व मिश्र तीन भेद है। मिश्र काव्य में चम्पू- वर्तमान में उर्धमान चम्भू की रचना की गई है। इन काव्य की गणना की जाती है। कहा गया है कि गद्य सबका परिचय प्रस्तुत हैपद्यमय काव्य चम्पूरित्यभिधीयते । अर्थात् गद्य व पद्य यशस्तिलक चम्पू के कर्ता आचार्य सोमदेव है जिनका मिश्रित काव्य चम्पू काव्य कहलाता है। चम्पू काव्यो का समय ई० को १०वीं शताब्दी तथा रचनाकाल शकसवत परम्परा का श्रीगणेश आठवी शती मे त्रिविक्रमभट्ट के नल ८८१ है। सोमदेव महान ताकिम व अखंड विद्वान थे। चम्पू से होता है। तबसे यह धारा अविच्छिन्न चली और वे राजनीति के भी महाज्ञानी थे । यशस्तिलक के अध्ययन लगभग दो सौ पचास चम्मू काव्यो क सृजन हुआ। चम्पू से ज्ञात होता है कि वे बेद, उपनिषद, रामायण, पडदर्शकाव्य परम्परा मे जैन चम्पू काव्यो का भी अपना विशिष्ट नादि के भी अप्रतिम ज्ञाता थे। यशस्तिलक की कथावस्तु स्थान रहा है। जैन चम्पू काव्यो में सोमदेव का "यश- हिंसा व अहिंसा के द्वन्द्व की कहानी है। इसमे पाठ स्तिलक' हरिचन्द्र का "जीवन्धर" और अर्हद्दास का अाश्वास है। प्रथम आश्वास में कथावतार तथा अन्तिम "पुरूदेवचम्पू" भति प्रसिद्ध है। इनके अतिरिक्त दयोदय तीन आश्वास में जैन श्रावकाचार वणित है। मुख्य कथा(पृ० ११ का शेषांश) वस्तु तो मध्य के चार आश्वास में ही है। कापं न करें जिससे सयम का घात होत हो, अगर कोई उज्जयिनी के राजा मारदत्त ने मनुष्य युगल की बलि माधु भेषधारी आगम के विरुद्ध कुछ भी चाहे तो उसको ना चण्डमारि देवी के सामने देने का सकल्प किया। इस हेतु कह देना यह पागम को मानना है। अगर बाप बीमार हो लाये गये जोड़े को देखकर उसका मन रुक गया और उसने और डाक्टर ने ठडा पानी मना किया हो और बाप ठडा उनसे वाल्यावस्था मे दीक्षित होने का कारण पूछापानी मागे तो उसके देने वाला गलत है, नही देने वाला उन्होने अपनी कथा मे बताया कि हिंसा का सकल्प और सही है। उस बाप की बात नहीं मानने वाला सही माने आटे की मुर्गी मात्र की बलि का विधान करने के कारण मे बेटा है। हमारे लिए आगम ही प्रमाण है वही हमारा किस प्रकार क्रमश: मोर-हिरण-जलजन्तु-बकरी-बकराडाक्टर है उसमे जिस-जिस काम का निषेध है वह हम मुर्गा छ योनियो मे भटकना पड़ा। यह सुनकर राजा नही कर सकते अपने लिए भी और दूसरो के लिए भी हिसा से विरत हुआ और सुदत मुनिराज के पास गया। चाहे वह कोई भी क्यो न हो। व्यक्ति को प्रमाणता नहीं इसी संदर्भ मे सप्तग व अष्टम आश्वास मे विभिन्न व्रतो है प्रमाणता तो उस सर्वज्ञ की वाणी की है वही सर्वोपरि व विधियो व दोनों का वर्णन है। सुदत्ताचार्य कथित है। तीर्थकर भी पूज्य तभी होते है जब उस आगम के गृहस्थ धर्म को सुनकर दोनो मुनि व प्रायिका का व्रत अनुसार हो। उस आगम की अवहेलना करने वाला न ग्रहण किया। मूनि है न श्रावक है न जैनी है न वह पूजने योग्य है उनको दूसरा महत्त्वपूर्ण जैन चम्पूकाव्य जीवन्धर है जिसके पूजने वाला भी आगम की अवहेलना करने वाला है जिन कर्ता महाकवि हरिश्चन्द्र है। हरिश्चन्द्र नोयक वशीय शासन का घातक है। जैनम् ज यत् शासनम् यही सर्वोपरि कायस्थ कुल के भाद्रदेव व पत्नी रूपा के पुत्र थे। हरि पचन्द्र वैष्णव परिवार में पैदा होकर स्वेच्छा से जैन बने ।

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