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(गतांक से मागे)
शुद्धि-पत्र धवल पु० ३ (संशोषित संस्करण)
जवाहरलाल सिद्धान्तशास्त्री, भीण्डर
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२०६
अशुद्ध सुत्र सरुवा २ की सासणसम्माइट्टि
२१६
२४० २४२
जीवो की गुणस्थान के काल से कहेग ओर जयगा पचेन्द्रिपतियंच तियंचयोनिनी सबसे बड़ा असंख्यातगृणा का कथन करना तप्पडिसेघग्गळं विकल्प के होने में घणंगुलतदियवग्ग मूल
सूत्र संख्या २ एव १५ की तिरिक्खसासणसम्माइट्टि [परिशिष्ट दृश्यताम् पृष्ठाक २३] तियंचो की गुणस्थान मे स्थिति अर्थात् टिकाव के काल से कहेगे और जायगा पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिनी सबसे स्तोक (थोड़ा) असख्यातगुणा है, ऐसा कहना तप्पडिसेहणट्ठ विकल्पस्वरूपता प्राप्त होन में xxxxxxx [चार भागहार कहाँ से आगये? तीन धाराओं के लिए तीन हो भागहार चाहिए। देखो-पृ. १४१, १५०, १५६, २२५ आदि] --विदियवग्गमूलाणं
२४८ २४६
२४६
--विदियवग्ग मूलाणि
२५२
दूने
आय --संजदरासि आदि की पादचा
२५४ २५६
आये -~-संजदरासि च [देखो-परिशिष्ट पत्र २३] आदि नौ गादव (देखो-ध. पु. ४११६३, चि. सा. ३१३ आदि) पचास वर्ग योजन ७६०५६६४१५० (वर्ग योजन) xx xxx
२५६ २५६ २५७
पचास योजन ७९०५६६४१५० यहाँ धवला के उपलभ्य
२२-२४
निम्न उदाहरण से स्पष्ट है