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पुखि-पत्र
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पंक्ति २४
अशुद्ध विष्कंभसूची के प्रतिभाग के समान
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होती। भाग से। जगच्छणी के संखेज्जसूई आदर आदर
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१६
३०७ ३१४
मरागस्वरूप से विलिदियबपज्जत्तेहिय अरने पर अपर्याप्त जीव हैं।
विष्कम्भसूची प्रमाण सूच्यंगुल के प्रथम वर्गमूल [आशा दें तो पूरी गणित करके उससे सिद्ध कर भेज दूं।] होति । भाग से जगत्श्रेणी से सखेज्जसूचि-अंगुल प्रारम्भ प्रारम्भ [नोट-प्रादरेदब्व होता तो 'आदर' अर्थ ठीक था। आढवेदव्वं का 'प्रारम्भ' अर्थ ही ठीक है। देखो-ज. प. पु. १४।३२३ में आढ़त्तसादो का अर्थ तथा ज.ध. १४२२६ में आढवेइ आदि के अर्थ । देखो-ज. घ. १५.१६० में आढविज्जदे का अर्थ ।] एक स्वरूप से विलिदियअपज्जत्तेहि य करने पर अपर्याप्त जीव है। शेष एक खण्ड प्रमाण द्वीन्द्रिय पर्याप्त जीव हैं। तक सर्व एकेन्द्रिय संख्यागणे जाकर अनेकान्तिक (हेवाभास) दोष है। अब घनाघन में घटा देना चाहिए [तब जो आता है वही अभीष्ट राशि का अवहारकाल होगा।] ॥७५।। पल्योपम से न्यून सागर में जीवराशि के गणिदे राशि के असंयतसम्यग्दृष्टि बादरवाफ्फइपत्तेयसरीरपज्जत्त
चरम पक्ति
३१६
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३०
३२.
तक एकेन्दिय असख्यातगशे जाकर अनेकान्त है। अब द्विरूप में घटा देना चाहिए ।।७।।
३४१
३४४ ३४७ ३६०
पल्योपम सागर में जीवरसि के
गुणदे
३६६
पर्याप्तराशि के असख्यातसम्यग्दृष्टि बादरवणफ्फइपज्जत-पत्तेय सरीरपज्जत्तवनस्पतिकाधिक पर्याप्त, प्रत्येकारीर पर्याप्त
२०
वनस्पतिकायिक-प्रत्येकपारीर-पर्याप्त
(क्रमशः)