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________________ पुखि-पत्र पृष्ठ २९२ पंक्ति २४ अशुद्ध विष्कंभसूची के प्रतिभाग के समान २९६ . . rm होती। भाग से। जगच्छणी के संखेज्जसूई आदर आदर .. ३०६ १६ ३०७ ३१४ मरागस्वरूप से विलिदियबपज्जत्तेहिय अरने पर अपर्याप्त जीव हैं। विष्कम्भसूची प्रमाण सूच्यंगुल के प्रथम वर्गमूल [आशा दें तो पूरी गणित करके उससे सिद्ध कर भेज दूं।] होति । भाग से जगत्श्रेणी से सखेज्जसूचि-अंगुल प्रारम्भ प्रारम्भ [नोट-प्रादरेदब्व होता तो 'आदर' अर्थ ठीक था। आढवेदव्वं का 'प्रारम्भ' अर्थ ही ठीक है। देखो-ज. प. पु. १४।३२३ में आढ़त्तसादो का अर्थ तथा ज.ध. १४२२६ में आढवेइ आदि के अर्थ । देखो-ज. घ. १५.१६० में आढविज्जदे का अर्थ ।] एक स्वरूप से विलिदियअपज्जत्तेहि य करने पर अपर्याप्त जीव है। शेष एक खण्ड प्रमाण द्वीन्द्रिय पर्याप्त जीव हैं। तक सर्व एकेन्द्रिय संख्यागणे जाकर अनेकान्तिक (हेवाभास) दोष है। अब घनाघन में घटा देना चाहिए [तब जो आता है वही अभीष्ट राशि का अवहारकाल होगा।] ॥७५।। पल्योपम से न्यून सागर में जीवराशि के गणिदे राशि के असंयतसम्यग्दृष्टि बादरवाफ्फइपत्तेयसरीरपज्जत्त चरम पक्ति ३१६ M M १० M MY mmmmmm Mmm ३० ३२. तक एकेन्दिय असख्यातगशे जाकर अनेकान्त है। अब द्विरूप में घटा देना चाहिए ।।७।। ३४१ ३४४ ३४७ ३६० पल्योपम सागर में जीवरसि के गुणदे ३६६ पर्याप्तराशि के असख्यातसम्यग्दृष्टि बादरवणफ्फइपज्जत-पत्तेय सरीरपज्जत्तवनस्पतिकाधिक पर्याप्त, प्रत्येकारीर पर्याप्त २० वनस्पतिकायिक-प्रत्येकपारीर-पर्याप्त (क्रमशः)
SR No.538042
Book TitleAnekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1989
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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