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बैन चम्मूकाव्य । एक परिचय
इनका समय ११-१२वी शती है। इनकी अन्य कृति में पुरदेव भगवान आदिनाथ के पूर्वभवों का वर्णन है। धर्मशर्माम्युदय प्राप्त होती है। जीवन्धर चम्पू की कथा- शेष स्तबकों मे भगवान आदिनाथ व उनके पुत्र भरत तथा । वस्तु इस प्रकार है-हेमागद देश के राजपुरी नामक बाहुबली का चरित्र नित्रण है । ग्रन्थ का कथाभाग अत्यन्त नगरी के राजा सत्यन्धर व रानी विजया थी। मन्त्री रोचक है जिसे कवि की कल्पनाओ ने और भी मर्म स्पर्शी काष्ठाङ्गर ने छल से राजा को मार दिया। इधर रानी ने बना दिया है। इसी कारण इस अल्पकाय काव्य मे कवि मयूर यन्त्र से उड़कर शमशान मे पुत्र को जन्म दिया जिसे आदिपुराण का समावेश सफलतापूर्वक कर सके। उसने देवी के वचनानुसार गन्धोत्कट वैश्य का दिया ।
दयोदय चम्पू मुनि श्री ज्ञानसागर को रचना है जिनका उसने उसका "जीवन्धर" नाम रखा। द्वितीय लम्ब मे
जन्म १६४८ विक्रम स० है। इन्होने हिन्दी व संस्कृत मे शिक्षा का तथा अपनी वीरता से गोपो की गाये छुड़ाकर
२१ ग्रन्थो की रचना की जिनमे दयोदय भी एक है। नन्द गोप की कन्या से अपने मित्र के विवाह का प्रसग
दयोदय की कथावस्तु में कथा के बहाने धर्मोपदेश है। है। तृतीय लम्ब मैं श्रीदत्त द्वारा किये गये स्वयंवर मे
इसमें सात लम्ब है। प्रथम लम्ब मे एक सुन्दर बालक जीवन्धर ने वीणावादन में गन्धर्वदत्ता को हराकर उससे पूर्व जन्म के पापो के कारण सडक पर जूठन खा रहा है विवाह किया। चतुर्थ लम्ब में अपने वीरता व हाथी से जो आगे चलकर गणपाल सेठ की पुत्री विपा मे विवाह गणमाला को बचाने से जीवन्धर का गुणमाला का विवाह करेगा। तत्पश्चात मृगसेन धीवर एक महाराज के उपहोता है । पच लम्ब में काष्ठागार द्वारा शूली को सजा दी देशनुसार अपने जाल मे प्रथम आने वाली मछली को जाने पर वहां से वे यक्ष का स्मरगा कर चन्द्राभ नगरी छोड़ने का व्रत लेता है। द्वितीय लम्ब में उसे खाली हाथ पहुंचे जहाँ सर्प द्वारा डसी हुई पदमा की रक्षा की तथा घर लौटा देखकर उसकी पत्नी कुपित होती है और दोनों पदमा से विवाह किया। षष्टम लम्ब मे प्रेमश्री से विवाह सर्प द्वारा डसे जाते है तथा सोमदत्त व विषा बनकर का वर्णन है तथा सप्तम लम्ब मे हेमा मथुराधीश राजा पैदा होते है। तृतीय लम्ब मे गणपाल सेठ सोमदत्त को दृढामित्र अपनी पुत्री कनकमाला का विवाह जीवन्धर के अपनी पुत्री का भर्ता सुनकर मारने की कोशिश करता है साथ करता है । अष्टम लम्ब मे सागरदत्त की पुत्री विमला परन्तु उसे एक ग्वा ना उठाकर ले जाता है तथा पालता से विवाह होता है। नवम लम्ब मे सुरमजरी से विवाह है। चतुर्थ लम्ब मे भी शकित गुणपाल सोमदत्त को मारने किया। दशम लम्ब में गोविन्द की सहायता से काष्ठागार की कोशिश करता है परन्तु भाग्यवश वहाँ भी उसका को मारा और गोविन्द महाराज की पुत्री लक्षमणा से विषा के साथ विवाह हो जाता है। पचम लम्ब में पुनः विवाह किया है। एकादश लम्ब मे पाठो रानियो ने आठ वह उसे अपने पुत्र महाबल द्वारा मरवाना चाहता है और राजपुत्रो को जन्म दिया और उनके साथ जैन मन्दिर म उल्टे महाबल ही मारा जाता है । सोमदत पुन: बच जाता पूजा कर अपने पूर्वभव सुने तथा अन्त मे पुत्र सत्यन्धर है। षष्टम लम्ब में गुणपाल की पत्नी उसे मारने की को राज्य सौप रानियो सहित दीक्षा ली।
कोशिश करती है वहां भी गणपाल मारा जाता है। तीसरा चम्पूकाव्य पुरूदेव है। इसके रचयिता महा- पश्चताप करती हुई वह स्वय भी मर जाती है। सप्तम कवि अर्हदास हैं। इनका समय १३-१४वी शती है। लम्ब मे महाराजा वृषभदत्त सोमदत्त की विनयशीलता से इनकी अन्य दो रचनाये और उपलब्ध है-मुनिसुव्रतकाव्य प्रभावित हो अपनी पुत्री गुणमाला का भी उसी से विवाह तथा भव्यजनकष्ठाभरण । प्रस्तुत काव्य के कथा नायक कर देता है । एक दिन सोमदत्त एक मुनिराज को आहार भगवान वृषभदेव है। इसमें दस स्तवक है। प्रथम में देता है और उनके उपदेशो से प्रभावित हो दोक्षा ग्रहण अतिवल व मनोहरा के महावल पुत्र हुअा। जिसके राज्य- करता है और विषा व वसन्तसेन भी आयिका व्रत लेती है। भार सम्भालने पर उसके मन्त्री स्वयबुद्ध ने सुमेरू पर्वत पांचवां चम्पूकाव्य “महावीर तीर्थकर" है जिसके पर दो ऋषियो से उसका पूर्वभव सुना । प्रथम तीन स्तबको
(शेष पृ० १५ पर)