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मुनि घातक कौन?
7 बाबूलाल जैन, कलकत्ते वाले आगम मे यह बताया है कि जिसने मुनिराज को एक त्यागी तो सयमरूपी प्राणो से जीता है वह दस प्राणो ग्रास आहार दान दिया उसने मुनि को मोक्ष दे दी। यह से नहीं जीता अत: जिनभने उनके सयम की रक्षा करी व्यवहार दृष्टि का कथन है। इसी का खुलाशा करते हुए उसने मुनि की रक्षा करी और जिसने उनके संयम के घात बताया है कि मुनिराज के आहार का विकला हुआ- का उपाय किया उसने मुनि हत्या ही करी। इतना बडा ध्यान से हटे--जब आहार दिया गया तो वह विकल्प टूट __पाप का बन्ध हम अपनी अज्ञानता में कर रहे है वह भी गया और मुनिराज ध्यान मे स्थिर होकर केवलज्ञान धर्म के नाम पर ।
आहारदान मुनिराज आजकल मुनिजन पुस्तक छपाने के लिए चदा करते के निविकल्प समाधि मे स्थित होने में परम्परा साधन ब नाने के लिा चन्दा दुकट करते है अथवा और हआ अत: ऐसा कथन किया गया है। उसी प्रकार जिस कया गया है। उसा प्रकार जिस कोई प्रचार कार्य के लिए चन्दा इकट्ठा करते है। यही
ते श्रावक ने मुनि को रुपिया-पसा दिया-परिग्रह दिया- काम कोई श्रान करता तो प्रशसा का पात्र होना परन्तु मान-सम्मान की चाह मे सहयोगी हुना अथवा अनेक प्रकार
मुनि अवस्था मे यह कार्य उस पद के लायक नहीं है। के विकल्पों के उत्पन्न होने में सहयोगी हुआ। २८ मूल किसी भी रूप में मा मा सम्बन्ध और पैसे को मागना गुणो के, संयम के घात मे महयोगी हुआ उसने मुनि को
मुनि के लिए उपयुक्त नही है। आजकल मा समझा नरक दे दिया । जो मुनि के सचम घात मे सहयोगी होगा
जाता है कि मुनि ही रुपिया इकट्ठा कर सकता है इसलिए चाहे किसी भी रूप में हो वह तीव्र पाप का बन्ध वाधेगा
कई सरथा वाले भो मुनियो के माध्यम से पंमा इकट्ठा यह निश्चित है।
__ करवाते हैं और बदले मे मुनियो को उपाधिया बांटते है। यह बात इसलिए लिखी जा रही है कि आज समाज यह कार्य कहाँ तक उपयुक्त है हमने सयमियो को चन्दा मे लोग बिना समझं त्यागियो को सयम की घातक सामग्री इकट्ठा करने का साधन बनाया है वह चाहे तीर्थ क्षेत्र देकर यह समझते है कि हम धर्मात्मा है, हमने इस कार्य रक्षा के लिए हो चाहे मन्दिर बनवाने को परन्तु सयमी के मे इतना पैसा खर्चा परन्तु उनको यह नही मालूम है कि लिए उपयुक्त नहीं है। यह कार्य थावक के करने का है। वे सयम के घात में नामत्त बने है इससे तो उल्टा पाप इसी प्रकार संयमी के तेल मालिश करना वह भो का बन्ध ही होगा।
रात को कपड़े से शरीर को रगड़वाना, गरिष्ट भोजन श्रावक निज मे संयम की आराधना नही कर सकता देना, उनकी फोटो खिंचवाना, नये-नये पोहो को छपवाना, है तब वह जो लोग संयम में लगे है उनके सयम के पालन अनेक प्रकार की उपाधियाँ देनी। रात-दिन का भेद नही में सहयोगी बनता है जो कि सयम के प्रति रुचि का रखना । रात्रि में चलना-फिरना बोलना । आगार के लिए कारण है। वह सब तरह से दूसरे संयमधारी के संयम मे पैसा इकट्ठा करना शासन देवो को पूजवा गा । ये सब बाते सहयोगी होना चाहता है परन्तु सयम के घात में सहयोगी तो आजकल दैनिक कार्य हो गया है पूजधाना और उन नही हो सकता । परन्तु आजकल जाने-अनजाने हम लोग सब कार्यों में सहायक है श्रावक, यह कहां तक ठीक है? सयमी के संयम के घात मे सहयोगी बन जाते है जिससे मेरा सभी भाई-बहनों से अनुरोध है कि वे कोई ऐसा पुण्य बन्ध तो दूर रहा पाप का बन्ध ही होता है ।
(शेष पृ० १२ पर)