Book Title: Anekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 122
________________ वाविराजसूरि के जीवनवृत्त का पुनरीक्षण की यह उक्ति कि "वादिराज अपनी काव्य प्रतिभा के ई०) में प्रकाशित भी हुआ था। श्री परमानन्द शास्त्री लिए जितने प्रसिद्ध है उससे कही अधिक ताकिक वैदूषी इसे वाग्भटालंकार के टीकाकार वादिराज की कृति मानते के लिए विश्रुत है।"3६ सवैया समीचीन जान पड़ती है। है। त्रैलोक्यदीपिका नामक कृति उपलब्ध नहीं है। यही कारण है कि एक शिलालेख में वादिराज को विभिन्न मल्लिषेण प्रशस्ति के "त्रैलोक्यदीपिका वाणी द्वाभ्यादाशिनिको का एकीभूत प्रतिनिधि कहा गया है-- मेवोद्गादिह । जिन राजत एकस्मादेकस्माद् वादि"सदसि यदकलंक कीर्तने धर्मकीतिः राजत: ॥"" मे कदाचित इसी त्रैलोक्यदीपिका का संकेत वचसि सुरपुरोधा न्यायवादेऽक्षपाद।। किया गया है। श्री नाथ राम प्रेमी ने लिखा है कि सेठ इति समयगुरूशामेकतः सगताना माणिकचन्द जी के ग्रथ रजिस्टर में त्रैलोक्यदीपिका नामक प्रतिनिधिरिव देवो राजते बादिराजः ॥"" एक अपूर्ण प्रथ है जिसमे प्रारम्भ के १० और अन्त अन्यत्र वादिराजसूरि को षटतर्कषण्मुख, स्याद्वाद- मे ५८ पृष्ठ के आगे के पन्ने नही है ।" सम्भव है यही विद्यापति, जगदेकमल्लवादी उपाधियो से विभूषित किया वादिराजकृत त्रैलोक्यदीपिका हो । विद्वद्रत्नमाला में प्रकागया है। एकीभाव स्त्रोत के अन्त मे एक पद्य प्राप्त शित अपने एक लेख मे प्रेमी जी ने एक सूचीपत्र के होता है जिसमे वादिराज को ममस्त बैयाकरणो, ताकिको आधार पर वादिराजकृत चार ग्रथों-वादमंजरी, धर्मएव साहित्यिकों एव भव्यमहायों में अग्रणी बताया गया रत्नाकर, रुक्मणी यशोविजय और अकलकाष्टकटीका का है।" यशोधरचरित के सुप्रसिद्ध टीकाकार लक्ष्मण ने उल्लेख किया है। किन्तु मात्र सूचीपत्र के आधार पर उन्हे मेदिनीतिलक कवि कहा है। भले ही इन प्रशसा- कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। परक प्रशास्तियों और अन्य उल्लेखो मे अतिशयोक्ति हो इस प्रकार वादिराजमूरि के परिचय, कीर्तन एवं पर सो सन्देह नहीं कि वे महान कवि और ताकिक थे। कृतियों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि वे बहुमुखी वादिराजसूरि की अद्यावधि पाच तियाँ असदिग्ध प्रतिभासम्पन्न कवि एव आचार्य थे। वे मध्ययुगीन सस्कृतहै--(१) पार्वनाथचरित, (२) यशोधरचरित, (३) एकी- साहित्य के अग्रणी प्रतिभ रहे है तथा उन्होने संस्कृत के भावरत्रोत, (४) न्यायविनिश्चय विवरण और (५) प्रमाण बहविध भाण्डार को नवीन भावराशियो का अनुपम उपनिर्णय । प्रारम्भिक तीन साहिसिक एवं अन्तिम दो न्याय- हार दिया है। उनके विधिवत् अध्ययन से न केवल जैन विषयक है । इन पाच कृतियो के अतिरिक्त श्री अगर चन्द साहित्य अपितु सम्पूर्ण भारतीय वाङ्मय का गौरव नाहटा ने उनकी त्रैलोक्यदीपिका और अध्यात्माष्टक समद्धतर होगा। नाम दो कृतियो का और उल्लेख किया है। इन मे अध्या प्रवक्ता सस्कृत विभाग त्माष्टक भा० दि० जैन ग्रथमाला से वि० १९७५ (१६१८ एस. डी. स्नातकोत्तर कालेज , मुजफ्फरनगर (उ. प्र.) सन्दर्भ-सची १. श्रीमद्रविडसघेऽस्मिन नन्दिसघेऽस्त्यरुगनः । ___ वर्ष २१, अक १ नवम्बर १६६६, पृ० १५ अन्वयो भाति योऽशेषणास्त्रवारासिपारगः॥ ४. पाश्र्वनाथचरित, प्रशस्तिपद्य १-४ एत्र गुणिनस्सर्वे वादिराजे त्वमेकतः । ५. यशस्तिलक चम्पू (सम्पा० : सुन्दरलाल शास्ली) तस्यैव गौरव तस्य तुला यामुन्नति. कथम् ॥ श्रुतसागरी टीका, द्वितीय आश्वास, पृ० २६५ -जैन शिलालेख सग्रह भाग-२, लेखाक २८८ ६. वही, पृ० २६५ २. द्रष्टव्य : वही भाग ३ को डा० चौधरी द्वारा लिखित ७. शकन पकालातीत सन्सरशतेष्वष्टस्वेकाशीत्यधिकेषु प्रस्तावना, पृ० ३३ गतेषु अंकता सिद्धार्थसवत्मरान्तर्गतचंत्रमामसदनत्रयो३. द्रष्टव्य : श्री गणेशप्रसाद जैन द्वारा लिखित "दक्षिण दश्याम...। भारत मे जैन धर्म और संस्कृति" लेख । "श्रमण" -~-यशस्तिलक चम्प, पृ० ४८१

Loading...

Page Navigation
1 ... 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145