Book Title: Anekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 116
________________ आचार्य कन्दकुन्द एवं उनके सर्वोदयवादी सिवान्त प्रस्तुत किया था। किन्तु इन सभी की भापा पूर्वी-भारत र्शन मे नही बल्कि उन्हे जीवन में उतारने की आवश्यकता मे प्रचलित वह जनभाषा थी, जिसे मागधी एव अर्ध- पर बल देते थे। उनके जो भी आदर्श थे, उनका सर्वप्रथम मागधी नाम मे अभिहित किया गया है। आचार्य प्रयोग कुन्दकुन्द नपने जीवन पर किया और जब वे कुन्दकुन्द की स्थिति इससे भिन्न है । उसमे खरे उतरते थे, तभी उन्हे गार्वजनीन रूप देते थे। उनके "पाहुड-माहित्य" का यदि गम्भीर विश्लेषण किया आचार्य कुन्दकुन्द पहले समर्थ लेखक एव कवि है, जाय, तो उगमे यह स्पष्ट विदित हो जायगा कि उनके जिन्होंने दक्षिणात्य होते हुए भी उत्तर भारत में जन्मी किसी। अहिंसा एव अपरिग्रह सम्बन्धी सिद्धान्त केवल मानव जनभाषा, जिसे कि भाषाशास्त्रियों ने "जैन शौरसेनी समाज तक ही सीमिप न थे, अपितु समस्त प्राणि-जगत प्राकृत" कहा, का केवल प्रयोग मात्र ही नहीं किया, पर भी लागू होत है । सर्वोदय का यह स्वरूप अन्यत्र दुर्लभ अपितु उममे निर्भीकता पूर्वक बिना किमी मोच-म कोच के ही है। जिओ और जीने दो" के सिद्धान्त का उन्होने धाराप्रवाह विविध विषयक विस्तृत साहित्य का प्रणयन आजीवन प्रचार किया। भी किया और उ. के मामर्थ्य एव गौरव को गुिणित कर उसकी लोकप्रियता में चार चाँद लगा दिए। उनके आचार्य कुन्दन्द को सर्वोदयी सस्कृति का क्षेत्र साहित्य की विशालता भी इतनी है कि उसकी पूर्ण सूची अत्यन्त विस्तृत है। वह वस्तुत हृदय-परिवर्तन एवं आत्मयहाँ प्रस्तुत कर पाना सम्भव नही । यही कहा जा माना गुणों के विकास की मस्कृति है। उसका मूल आधार -- है कि उनके उपलब्ध उव अनुपलब्ध ग्रन्थो की कुल मख्या । मैत्री, प्रमोद, कारुण्य एवं मध्यस्थ-गवना हो रही है। सम्भवत -१/- दर्जन से भी अधिना है । परवर्ती लेख- यह विचारणीय है कि रूपगो, पमो सोना-चाँदी, वैभव, आचार्यों के सम्मुख उन्होने इतना गरम एवं मर्मस्पी पद-प्रभाव आदि के बल पर अथवा मौलिक-पाक्ति के बल साहित्य लिखकर क ऐसा विशेष आदर्श उपरिजन किया । पर क्या आत्म गुणो का विकास किया जा सकता है ? क्या वि जिमगे प्रेरणा लेकर परवर्ती अनेक कवि १०वी, :१वी । शारीरिक-सौन्दर्य तगा उच्च कूल एब जाति में जन्म ले सदी तक निरन्तर उमी भाष में मात्य-प्रणयन करते लेने मात्र से ही मद्गुणो का आविर्भाव हो जाता है? मरलता, निश्छलता, दयालुता, परदुःखकातरता, श्रद्धा आधुनिक भारतीय भाषाओ के उद्धव एवं विकास के एव सम्मान की भावना क्या दूकानों पर बिकती है, जो अध्ययन क्रम में भाषा वैज्ञानिको ने यह भी स्पष्ट कर खरीदी जा मके ? नहीं। सद्गुण नो यथार्थत. श्रेष्ठगणीदिया है कि ब्रजवोली का उद्धव एव विकास "शौरशेनी- जनो के समर्ग मे एवं वीनगग-वाणी के अध्ययन से ही आ प्रात" से हुआ है । अत: यदि निप्पक्ष दृष्टि से देखा जाय, सकते है । कुन्दकुन्द ने कितना मुन्दर कहा है - तो कुन्दकुम्द ही ऐसे पथम आचार्य है, जिनके माहित्य ने णदि देहो वदिज्जइ ण वि य कुलो ण वि य जाइ-सजुत्तो। आधनिक ब्रजभाषा व साहित्य को न केवल भावभूमि को नदइ गणहीणो णह मवणो णे मावओ होइ दिमण० २७ प्रदान की, अपितु उसके बहु आयामी अध्ययन के लिए • स्रोत भी प्रदान किए। इस दृष्टि मे कुन्दकुन्द को हिन्दी अर्थात् न तो शरीर की वन्दना की जाती है और न साहित्य, विशेषतया ब्रज-भाषा एव उसके भक्ति-साहित्य- कुल की, उच्च जाति की भी वन्दना नहीं की जाती। रूपी भव्य-प्रासाद की नीव का ठोस पत्थर माना जाय, गुणहीन की वन्दना कौन करेगा? पाकि न तो सदगुणो तो अत्युक्ति न होगी। के बिना मुनि हो सकता है और न ही धावक । कुन्दकुन्द की दूसरी विशेषता है, उसके द्वारा सर्वोदयी पुन: कुन्दकुन्द कहते हैं :संस्कृति का प्रचार । भारतीय सस्कृति वस्तुतः त्याग की मवे वि या परिहीणा रूख-विरूवा वि बदिदमुवया वि । संस्कृति है, भोग की सस्कृति नहीं। वे सिद्धान्तो के प्रद- सीलं जेसु सुसील सुजीविदं माणस तेहिं साल०१८

Loading...

Page Navigation
1 ... 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145