Book Title: Anekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 98
________________ २२, वर्ष ४२, कि. ३ अनेकान्त पृष्ठ पक्ति अशुद्ध पलिदोवमा-- निरन्तर चालू है। अवहारकाल असख्यात आवलियो से पल्यापम के पलिदोवमचालू है। [मान्तरमार्गणात्वात् निरन्तरशब्दस्यौचित्व न प्रतिभाति] अवहारकाल भी असख्यात आवलियो का पल्योपम के प्रथमवर्गमूल में भाग देने पर जो भाग लब्ध आवे उससे पल्योरम के असख्यात आवलियाँ ३२ २३ असख्यात आलियाँ ८; ७४ २४ २५६४८:-२०४८ सा० २५६ ------ ---८, २५६४८- ०४८ मा. त पल्योपम को अवहारकाल में भाजित पल्पोपम के अधस्तन वगस्थानों को अवहार काल से कवल भाजित m ३२ के विकम्छेद २३२ ३२ के त्रिकच्छेद ३३२ सम्यग्दृष्टि परूपणा सम्यग्थष्टि प्ररूपणा - २४३-६-१-५ २ -२, २ ५ ३ ६,६-१-५; १६-८०, ८०+५:८ण १८१८-१-१७; १७४१६-२७२; २७२+५-२७७ भाग ८७ ३१ ८८ १४-१५ १८-१-१७९१६ -२७२+५:२७७ भास धनाधन के सयत सम्बन्धी सम्यग्ज्ञानियो के द्वारा सम्यग्ज्ञानियों ने अवलोकन किया है। तीन मो ८-१-७-२३:४६ --२१+१७-३८४४३०४ क्षपकजीव दुरहिय-- एमा बहा घना नपल्य मयतसम्बन्धी मन्दष्टि की अपेक्षा मन्दष्टि की अपेक्षा देखा अर्थात माना गया तीन सो ८-१-७,७:२८: ३; X ६-२१. २१+१७-३८,३८४८३०४ क्षपक व अयोगी जीव दुसहियएसा गाहा

Loading...

Page Navigation
1 ... 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145