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पृष्ठ
२
४४ २७-२८
४५
४६ १४-१५
४६
४६
४७
४७
४७
४७
५१
५२
५२
५३
*
५५
५५
५.६
५६
पंक्ति
५८
५२
५६
७०
६१
८
१८
२०
६
१४
१८
२०
१५
२८
३०
२३
२७
२८
२६
१७
२६
१६
३०
१०
w
अशुद्ध
प्रसारित कर देने पर षपूर्ण जीवराशि का तीसरा भागरूप विस्तार जाना जाता है। अनन्तर इन खंडो को देने पर चौथा
भागहार में उसी के
"एक कम होता है |२४|
शुद्धि-पत
१
(२)
= }
१+3
हानि और वृद्धि में भागहार
१० वृद्धिरूप
भाज्यमान राशि मे
४ | ३६-- ४०
गुणित करने पर
कब (मिध्यादृष्टि )
द्विगुणित
ध्रुवराशि का प्रमाण १२-१ / ३
उदवर्तित
उबतित
का उपरिमवर्ग ६५५१६;
६५५१६
१३
६५५१६. १
अंतिम भागहारेण
अन्तिम भागहार से
मध्यादृष्टि
१७४६८
मध्यादृष्टि
भागहर के
२६२१४४;
शुद्ध
मिला देने पर सर्व जीवराशि के तीसरे भागप्रमाण चोडा और भागप्रमाण आयत (लम्बा) क्षेत्र प्राप्त होता है। इसको देने पर प्रत्येक एक पर चौथा भागहार में वृद्धिररूपख्या के अबहार (हर) से (भजनफल) सम्पास्थित
हर "भागहर से भजनफल की हानि की स्थिति में तो रूपाधिक होता है और
[ भागहार से भजनफल की] वृद्धि की स्थिति म रूप हीन ( एक कम) होता है ||२||
१
(२)
१
दोनो लब्धों की जोड़ अथवा बाको को
बताने के लिए: मूल भाग्य का भागहार (६+४) वृद्धिरूप
१०:
हीन भज्यमान राशि में
४ ४ + ३६ ४०
23
अपहृत करने पर [ देखो प्रस्ता० पत्र ५३ ]
क-अ ( मिध्यादृष्टि )
त्रिगुणित
(१२-१३ प्रमाण गुणकार
अपवर्तित
अपवर्तित
का उपरिमवर्ग ६५५३६;
६५५३६ १३
६५५३६ १
२१
अंतिम भागहारछेदणएहि
अन्तिम भागद्वार के से मिध्यादृष्टि
१७, १७x४= ६८
मिध्यादृष्टि
भागहार के
२६२१४४; २६२१४४ का इच्छित वर्ग
=X
६८७१६४७६७३६ (१०५९,६० व ६२ को देखो