Book Title: Anekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 100
________________ अनेकान्त ४, वर्ष ४२, कि० । पृष्ठ पंक्ति अशुद्धि जगन्छे णी से अपनयन करके अर्थात् भाजित करके) हटा करके, यानी काट करके) "अर्थात् हर मे स्थित जगच्छेणी से अंश में स्थित जगच्छणी को काट करके" यही मदृश अपनयन का अर्थ है। [नोट-गणित विषयक ऐसी गलतियां, थोडी-सी भूल से शीघ्र हो जाया करती है। तृतीयमूलहतबारहवे वर्गमूल से असंख्यात वर्गस्थान नीचे जाकर, यानी [२] १ असंख्य मवणीदे पच चरम पक्ति तृतीयमूलबारहवं वर्गमूल से नीचे जाकर १६६ १६६ १६६ मवणीए पचम पचम पांचवी ३६६४३०४ पंच पांच ४१६४३०४ १७० १७१ १७५ वह इस प्रकार हैसातो हो विरलनो को ग्रहण करके सातो विरलनो के ग्रहण करके भी १०४८५७६ ३२ १०४८५७६ १७८ पृथक रूप से मध्य मे स्थापित १२३ पृथिक रूप से मध्य मे स्थापित भागोदेने पर जगच्छणी के लब्ध आवे वह छठी विरसनो л - л - л ~ л - л - ४० आते हैं भागो-२ देने पर जो आता है वह जगच्छणी के लब्ध आवे उतना होता है, और यही छठी विरल नो ४२२ आते है मिथ्यादृष्टि अवहार शलाकाओं से एक को जोड़ा तब शेष रही प्रमाणराशि आदेश से देवो मे १८३ १९२ १९८ २०१ मिध्यादृष्टि शलाकाओ से एक जोड़ा तब शेष रही राशि आदेस ससे वेदो मे

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