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१०, वर्ष ४२, कि.
भनेकान्त
प्रभिलेख, वास्तुशिल्प आदि पर्याप्त परिमाण मे भूगर्भ से मलखेड़ मूअ केन्द्र था जहां से उसकी दो शाखायें स्थापित उत्खनन में प्राप्त हुए हैं जो इस तथ्य के दिग्दर्शक हैं कि हुई-कारजा और लातूर । इस गण के साथ सरस्वतीअभी भी न जाने कितनी जैन सांस्कृतिक संपदा जमीन के मच्छ का विशेष सम्बन्ध रहा है। समीपवर्ती अकोला नीचे छिपी पड़ी है। यहा उत्खनन अभी बहुत शेष है। जिले के खिनखिनी ग्राम में सरस्वती की एक प्रतिमा उपजो भी हुआ है उसके आधार पर यह निश्चित रूप से लब्ध हुई है जिसके शिरोभाग मे जैनमूर्ति विद्यमान है। कहा जा सकता है कि जैनधर्म महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में कारजा मे भी सरस्वती मूर्ति है। यहां का काष्ठ शिल्प बहुत फला-फूला है।
भी उल्लेखनीय है। नागपूर का समीपवर्ती ग्राम केलझर लगता है, जैन अकोला जिले के शिरपूर स्थित अंतरिक्ष पार्श्वनाथ संस्कृति का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। यहां से जैन उपासक का जैन मन्दिर उत्तर मध्यकाल के वास्तुशिल्प का अच्छा की एक सुन्दर प्रतिमा मिली है। वृषभदेव आदि की भी नमूना है। यहा प्राप्त एक संस्कृत शिलालेख के अनुसार कुछ मूर्तियां प्राप्त हुई है जो लगभग ११वीं शती की इसका निर्माण स० १३३४ (ई. सन १४१२) मे हुआ होनी चाहिए। नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा संचालित था। इसी जिले के खिनखिनी गांव के कुएं से अनेक जैन १६६७ के उत्खनन म पवनार (वर्धा जिला) से भो दो प्रतिमायें प्राप्त हई है-जिनके लेखों के आधार पर वे प्रस्तर जिन मूर्तिया प्राप्त हुई है जिनका समय सातवी- लगभग नवी शती की सिद्ध होती है। ऋषभनाथ और आठवी शताब्दी माना जा सकता है। पवनी (वाकाटक) पार्श्वनाथ की सरस्वती सहित सपरिवार मूर्ति विशेष राजधानी प्रवरपुर है।"
उल्लेखनीय है। इनकी यक्ष मूर्तियां अपेक्षाकृत अधिक भंडारा जिले के पदमपुर गांव मे सप्तफणधारी पार्श्व- अलकृत है। प्राचीन तीर्थमाला में इसे एलचपुर के अन्तर्गत नाथभूति तथा अन्य जिन प्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं। जो दिगम्बर सम्प्रदाय का गढ बताया गया है। अकोला के उत्तर-मध्यकाल की प्रतीत होती है । देव-टक (चादा से ६६ पास ही पात र गाव से प्राप्त एक और जैन लेख सन् मोल दूर) मे एक प्राचीनतम अभिलेख मिली है। जिसमें ११८८ का मिला है जो वर्तमान मे नागपुर संग्रहालय मे अहिंसा का उपदेश दिया गया है। रायबहादुर हीरालाल सुरक्षित है। ने इसे अशोक के शिलालेखो से मिलान किया है और ई. अमरावती जिले मे ही एक कुडिनपुर गांव है जिसका पू० तृतीय शताब्दी का ठहराया है।" लिपि के आधार अधिपति महाभारत का भीम माना गया है।" कालिदास पर वैसे इसे कलिंग के साथ भी बैठाया जा सकता है। ने इन्दुमती को विदर्भराज भोज की बहिन और विदर्भराज कलिंग का सम्बन्ध विदर्भ से रहा भी है। जनरल कनिंघम को कण्डनेश कहा है। हरिषेण के वृहत्कथाकोष के अनुऔर प्रयागदत्त शुक्ल के उल्लेखो से भी पता चलता है कि सार यह गांव प्राचीनकाल में जैनधर्म का महत्त्वपूर्ण केन्द्र चादा जिले मे जैन मन्दिर और मूर्तिया प्राचीन काल में होना चाहिए। डा. दीक्षित द्वारा किये गये उत्खनन विद्यमान थी।
कार्य से भी यह तथ्य सामने आता है । १२ बुलढाना जिले के सातगाव में उपलब्ध जैन मूर्तियां अचलपर भी मध्यकाल मे जैन संस्कृति का प्रख्यात वहां की प्राचीनता की कथा बताती है।" मेहकर और केन्द्र रहा है। धनपाल ने अपनी "धम्म परिक्खा" यही रोहिणखड भी इसी तरह एक अच्छे जनकेन्द्र रहे होगे।" पूरी की थी। हेमचन्द्र सूरि ने भी अचलपुर का उल्लेख ___ कारजा (अमरावती) भी मध्यकाल का एक अच्छा करते हुए यह सकेत किया है कि यहा के निवासियों के जैन केन्द्र था। यहा का समृद्ध ग्रन्थ भंडार इसका साक्षी उच्चारण में च और ल का व्यत्यय हो जाता है। आचार्य है। अपभ्रश महाकवि पुष्पदत का सम्बन्ध इस गांव से जयचन्द्रसूरि (नवी शती) ने अपनी धर्मोपदेशमाला में था। उनके अनेक ग्रन्थ यहां के भंडार मे उपलब्ध हुए है। अचलपुर के अरिकेशरी नामक दिगम्बर जैन नरेश का यह स्थान बलात्कार गण का केन्द्र होना चाहिए। वैसे उल्लेख किया है-"अयलपूरे दिगम्बर भत्तो अरिकेसरी